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शाकाहारी गाँव पूजाल
मंद्रास से १३ किलोमीटर दूर व्यस्त हाईवे से एक सड़क उतरती है। यह गाँव आजकल सुर्खियों में है। इसकी वजह है शाकाहारी। चन्दा प्रभु के नाम से विख्यात यह गाँव अगले दो साल में पूर्ण शाकाहार हो जायेगा। शाकाहार का प्रसार यहाँ इतना हो रहा है कि दूर-दूर तक इस गाँव का नाम लोकप्रिय हो गया है।
यह भी एक विसंगति ही है कि अहिंसा के देश भारत में भी आज शाकाहार का प्रचार-प्रसार करना पड़ रहा है। इसकी वजह है कि भारत में बहुमत मांसाहारियों का है और माँसाहार के खिलाफ मुहिम शुरू की है इस छोटे से गाँव पूजाल ने।
पूजाल में शाकाहार का जो प्रयोग आज हो रहा है ४० साल पहले वह इस्राइल के अमीरियम गाँव में हो चुका है। अमीरियम में शाकाहार का प्रयोग साम्प्रदायिक सदभाव के लिए किया गया था। इससे वहाँ २०० मुस्लिम, यहूदी व ईसाई परिवार आपसी भेद-भाव मिटाकर अभिन्न मित्र बन गये थे। तब यह सिद्ध हुआ था कि भोजन भी दुश्मनी को दोस्ती में बदल सकता है।
पूजाल में भी इसी उद्देश्य से शाकाहार की परियोजना चलायी जा रही है। इस परियोजना के मुख्य अधिकारी श्री कृष्णचन्द्र चोरड़िया का कहना है, 'हम यहाँ भी यह साबित करना चाहते हैं कि समान भोजन की आदत लोगों को नजदीक ला सकती है और यह शाकाहार से पूरी तरह सम्भव है।'
श्री चोरड़िया १६८० में विश्व शाकाहार कांग्रेस के दौरान अमेरिका गये थे और तभी उन्होंने ठान लिया था कि वे भारत में भी एक 'शाकाहार गाँव' बनायेंगे। इसके लिए उन्होंने पूजाल को चुना। लेकिन योजना को कार्य रूप देने में पूरा एक दशक लग गया। अप्रैल १६८0 में उन्होंने इसे अमली जामा
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