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________________ आत्मोपलब्धि की कला : ध्यान - महोपाध्याय मुनि चन्द्रप्रभसागर "कुन्दकुन्द", आत्मवाद के प्रस्तोता हैं। उनके चिन्तन के सारे कपोत, आत्मा के ही आकाश में उड़ते हैं। वे चाहे जिस मार्ग की चर्चा करें, उस मार्ग का मार्गफल तो आत्मा में ही निष्पन्न होगा। इसलिए आत्मा ही उनका आदर्श है और आत्मा ही यथार्थ है। ___ "आत्मा" एक ऐसा शब्द है जो अपनी संचेतना का, 'सेल्फ कॉन्सियसनेस का पर्याय है। यह, वह ऊर्जा है जो मन, वचन और शरीर/बदन में रहते हुए भी उनसे अलग भी अपना अस्तित्व रखती है। आत्मा का कभी-कभी मन के पर्याय रूप में भी उपयोग किया जाता है। आदम लोग आत्मा को भौतिक वस्तु मानते थे। रक्त और श्वांस जैसी चीजें ही आत्मा कहलाती थीं। अब ऐसा नहीं है। यह सही है कि श्वांस आत्मा की परिचायक है, पर आत्मा पूर्णतः श्वांस नहीं है। वह तो सब श्वांसों के श्वांस में है। श्वांस तो शरीर और आत्मा के संयोग को बनाये रखने की कड़ी है। इसलिए अगर आत्मा अनुभूति है तो श्वांस उसकी अभिव्यक्ति। धर्म में आत्मा को अशरीरी माना जाता है। यह वह शक्ति है, जो भिदती नहीं, इसलिए अभेद्य है, यह मरती भी नहीं, इसलिए यह अमर है। यह जन्म और मृत्यु के बीच ही नहीं, जन्म और मृत्यु के पार भी अस्तित्व बनाये रखने में समर्थ है। आत्मा, मरणधर्मा नहीं है, मरणधर्मा तो शरीर है। आत्मा तक मृत्यु की पहुँच नहीं है। पर हां, मृत्यु उन सबको तो नष्ट ही कर डालती है, जिनसे "आत्मा" अभिव्यक्त होती है। आत्मा अमर है, अभौतिक शक्ति है, जिसका अस्तित्व शरीर में और शरीर के बाहर भी बना रहता है। यह स्वतन्त्र रूप में अस्तित्व बनाये रखने में समर्थ है। अफलातून ने आत्मा को "शाश्वत प्रत्यय" कहा है। प्रत्यय वह है जिसकी प्रतीति हो सके। आत्मा अनुभवगम्य है। आत्म ज्ञान का अर्थ ही आत्मप्रतीति है। आत्मा तक पहुँचने के लिए हमें उन सारे तादात्म्यों से ऊपर उठना होगा जो आत्म-अतिरिक्त हैं। ऊपर उठने का अर्थ स्वयं का किसी से विच्छेद नहीं है वरन अपनी पंखुड़ियों को कीचड़ से लिप्त होने से बचाना है। जैसे नौका सागर में चलती है, सागर से अलग होकर नहीं वरन सागर से ऊपर उठकर चलती है। देहातीत होने का तात्पर्य यही है कि अपने आपको देह से ठीक वैसे ही उठा लें जैसे नौका सागर से ऊपर होती है। नौका साधन है, पार लगाने का। पर तभी, जब नौका सागर से ऊपर हो। जहाँ नौका पर सागर आना शुरु हो गया, वहाँ नौका, नौका न रह पायेगी, पत्थर की शिला हो जायेगी और मैंझधार में ही डूबना होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525013
Book TitleSramana 1993 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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