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________________ डॉ. कमल जैन आर्तध्यान से कर्मों का क्षय नहीं होता, अपितु कर्मों का बन्धन बढ़ता है और कर्मों का बन्धन बढ़ने से संसार की वृद्धि होती है। 2. रौद्रध्यान -- अतिशय क्रूर भावनाओं तथा प्रवृत्तियों से संश्लिष्ट ध्यान रौद्रध्यान कहा जाता है। यह ध्यान भी अशुद्ध और अप्रशस्त है। रौद्रध्यान संसार की वृद्धि करने वाला और नरक गति की ओर ले जाने वाला है। 3. धर्मध्यान -- जिससे धर्म का परिज्ञान हो उसे धर्म ध्यान कहा जाता है। इसे शुभ ध्यान् कहा गया है। धर्म ध्यान की अनुभूति आंतरिक है। व्यक्ति स्वयं इसको अनुभव करने लगता है। उसका शील स्वभाव भी बदल जाता है। मैत्री की भावना जागृत होती है माध्यस्थ भाव प्रकट होता है और मूर्छा घट जाती है। 4. शुक्लध्यान -- जिस साधक की विषय वासनायें और कषाय नष्ट हो जाते हैं और चित्त वत्ति निर्मल हो जाती है उसे शक्ल ध्यान की उपलब्धि होती है। शुक्ल ध्यान की यह उपलब्धि ही हरिभद्र की दृष्टि में हमारी योग-साधना की चरम परिणति है क्योंकि यह मोक्ष का अन्यतम · कारण है। - पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी। Jain Education International FOD Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525013
Book TitleSramana 1993 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1993
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size3 MB
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