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श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर, १६८२.
निम्नलिखित नाटकों के निम्नलिखित छात्रोपयोगी सरस अंश हिन्दी अनुवाद के साथ संकलित
1. सुभद्रानाटिका ( तृतीयांक) हस्तिमल्लकृत 2. अंजना पवनंजय नाटक (चतुर्थांक) हस्तिमल्लकृत 3. मैथिली कल्याण नाटक ( चतुर्थांक) हस्तिमल्लकृत 4. रम्भामंजरी ( प्रथमांक) नयचन्द्र सूरिकृत ___भूमिका में महाकवि हस्तिमल्ल के जीवन-परिचय के साथ उनकी रचनाओं एवं रचना-वैशिष्ठ्य का उल्लेख करते हुये उन्हें आद्य जैन नाटककार के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। ग्रन्थ के उत्तरार्ध में छात्रों के लाभ की दृष्टि से महाकवि हस्तिमल्ल एवं नयचन्द्रसूरि के नाटकों का संक्षिप्त समीक्षात्मक अध्ययन, कथावस्तु, नाट्य-शिल्प, सट्टक का स्वस्म, नाटिका
और सट्टक में अन्तर, पात्रों का चरित्र-चित्रण, तात्कालिक सामाजिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, नाटकों में प्राकृत भाषा का स्वरूप तथा अन्य अपेक्षित विषयों का विद्वतापूर्ण विवेचन किया गया है। परिशिष्ट में प्राकृत के प्रमुख अंशों का संस्कृत स्पान्तर है, जिस से छात्र पर्याप्त लाभान्वित होंगे।
इस संकलित पाठ्य ग्रन्थ के माध्यम से भारतीय साहित्याकाश के दो ऐसे भास्वर नक्षत्रों को छात्रों एवं जनसमाज के समक्ष लाने का श्लाध्य एवं पवित्र प्रयास किया गया है जिन्हें हम लगभग भूल चुके थे।
शोध संस्थान, उ मुनि डॉ. राजेन्द्र रत
जैन परामनोविज्ञान, लेखक-- मनि डॉ. राजेन्द्र रत्नेश, साध्वी-- डॉ. प्रभाश्री. प्रकाशक-- श्री अम्बा गुरू शोध संस्थान, उदयपुर, राजस्थान, आकार- डिमाई 16 पेजी, पृष्ठ-संख्या 127+11-138, मूल्य 50/%D
प्रस्तुत कृति डॉ. मुनि राजेन्द्र रत्नेश और साध्वी डॉ. प्रभाश्री जी के द्वारा संयुक्त रूप से प्रणीत है। यह कृति पाँच अध्याय में विभक्त है। प्रथम अध्याय में परामनोविज्ञान के स्वरूप का चित्रण है। साथ ही इसमें प्रेतविधा, सम्मोहन, अतिन्द्रिय ज्ञान शक्ति का भी सामान्य विवरण है। द्वितीय अध्याय में पुर्नजन्म की अवधारण को प्रस्तुत करते हुए जाति स्मरण ज्ञान की चर्चा की गई है। तृतीय अध्याय मुख्य रूप से प्रेत जीवन की सम्भावना एवं तत्सम्बन्धी साक्ष्यों का विवरण देता है। चतुर्थ अध्याय में अतिन्द्रिय दृष्टि एवं दूरबोध, से सम्बन्धित है। जबकि पंचम अध्याय में स्वप्नों के माध्यम से होने वाले पूर्वाभासों की चर्चा करता है। विद्वान लेखक व्य ने इस Jain Education International For Private & Personal Use Only
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