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________________ पुस्तक-समीक्षा 'गच्छाचार-पयन्ना, संयोजक-- जगत्पूज्य सौधर्म बृहत्तपोगच्छीप भट्टारक श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरिश्वर जी महराज, संशोधक-- उपाध्याय श्री गुलाब विजय जी महाराज, प्रकाशक-- मुनिराज जी जयानन्द विजय जी के सदुपदेश से शा अमीचंद जी ताराजी दाणी, मु.पो. धानसा (जिला-जालोर ) राजस्थान, आकर-- डिमाई 16 पेजी, पृष्ठ-संख्या 320, मूल्य 100/%3D जैन आगम परम्परा ग्रन्थों में प्रर्कीणकों का अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। यद्यपि परम्परानुसार मात्र 10 प्रीणक ही 45 आगमों की गणना में सम्मिलित हैं किन्तु उपलब्ध प्रर्कीणकों की संख्या अधिक है। महावीर विद्यालय बम्बई से पइण्णयसुत्ताइं नामक जो ग्रन्थ दो भागों में प्रकाशित हुआ है उसके प्रथम भाग में 20 प्रर्कीणक प्रकाशित हैं। इन प्रर्कीणकों में गच्छाचार प्रर्कीणक भी एक हैं। इसे पूर्वाचार्य प्रणीत माना जाता है। इसका ग्रन्थ का आधार मुख्य रूप से बृहत्-कल्प, व्यवहार, निशीथ महानिशीय आदि छेद सूत्र ही माने गये हैं। इसमें मुख्य रूप से मुनि आचार का विवरण है। संघ में साधु-साध्वी किस प्रकार रहें, यही इस ग्रन्थ का मुख्य प्रतिपादय है। यह प्रर्कीणक पूर्व में उपाध्याय श्री गुलाव विजय जी प.सा. द्वारा वि.सं. 2002 में प्रकाशित हुआ था। यह उस ग्रन्थ की द्वितीय आवृत्ति है। इसके प्रेरक हैं -- मुनि श्री जयानन्द विजय। इसके अनुवाद की भाषा गुजराती है, किन्तु उसे देवनागरी में मुद्रित किया गया है। अतः देवनागरी लिपि के माध्यम से हिन्दी भाषी भी इसका लाभ उठा सकते हैं। इसमें कुल 137 गाथाएं है। उपाध्याय श्री ने न केवल इनका गुजराती अनुवाद प्रस्तुत किया, बल्कि उन पर विवेचन भी लिखा है। इस ग्रन्थ में गुरु-शिष्य सम्बन्ध एवं साधु-साध्वी जीवन के स्वरूप पर भी प्रकाश डाला गया है इस दृष्टि से साथ ही संघीय जीवन का एक सुव्यवस्थित चित्रण भी इस ग्रन्थ में उपलब्ध है। कृति महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए प्रकाशक एवं प्रेरक धन्यवाद के पात्र मध्यकालीन जैन सट्टक-नाटक, डॉ. राजाराम जैन एवं डॉ. (श्रीमती) विद्यावती जैन, पृ.168, मूल्य 24.00, प्रथम संस्करण - फरवरी 1992 ई., प्रकाशक - प्राच्य श्रमण भारती। मध्यकाल के जैन नाटककारों में कविवर हस्तिमल्ल और नयचन्द्र सूरि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उनके नाटक और सटक साहित्यिक दृष्टि से उच्चकोटि के हैं, फिर भी दर्भाग्यवश प्रसिद्धि नहीं प्राप्त कर सके हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में उन्हीं विस्मृत प्रायः श्रेष्ठ कवियों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525012
Book TitleSramana 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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