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________________ 62 श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर, १९८२ श्री देसाई द्वारा दी गयी पूर्णिमापक्ष प्रधानशाखा की पट्टावली में सर्वप्रथम पूर्णिमागच्छ के प्रवर्तक चन्द्रप्रभसूरि का उल्लेख है। इसके बाद धर्मघोषसूरि एवं उनके बाद समुद्रघोषसूरि का नाम आता है। उक्त पट्टावली के अनुसार समुद्रघोषसूरि के शिष्य सुरप्रभसूरि से पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा का आविर्भाव हुआ। वि.सं. 1252 में पूर्णिमागच्छीय मुनिरत्नसूरि द्वारा रचित अममस्वामिचरित्रमहाकाव्य की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपने गुरुभ्राता सुरप्रभसूरि का उल्लेख किया है। पट्टावली में सुरप्रभमूरि के बाद जिनेश्वरसृरि, भद्रप्रभसूरि, पुरुषोत्तमसूरि, देवतिलकसूरि, रत्नप्रभसूरि, तिलकप्रभसूरि, ललितप्रभसूरि, हरिप्रभसूरि आदि 8 आचार्यों का पट्टानुक्रम से जो उल्लेख है, उनके बारे में अन्यत्र कोई सूचना नहीं मिलती। हरिप्रभसूरि के शिष्य जयसिंहसूरि का अभिलेखीय साक्ष्यों में उल्लेख मिलता है। चूंकि भुवनप्रभसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें वि.सं. 1512 से वि.सं. 1531 तक की हैं अतः उनके गुरु जयसिंहसूरि का समय वि.सं. 1500 के आस-पास माना जा सकता है। चूंकि इस शाखा के प्रवर्तक सुरप्रभसूरि के गुरुभ्राता मुनिरत्नसूरि का समय वि.सं. की तेरहवीं शती का द्वितीयचरण [वि.सं. 1252] सुनिश्चित है, अतः यही समय सुरप्रभसरि का भी माना जा सकता है। सुरप्रभसूरि से जयसिंहसूरि तक 250 वर्षों की अवधि तक 10 आचार्यों का नायकत्व काल असंभव नहीं लगता। इस आधार पर सुरप्रभसरि से जयसिंहमरि तक की गुरु-परम्परा, जो पट्टावली में दी गयी है, प्रामाणिक मानी जा सकती है। इसी प्रकार जयसिंहसरि और उनके पट्टधर जयप्रभसूरि से लेकर भावप्रभसूरि तक जिन 9 आचार्यों का नाम पट्टावली में आया है, वे सभी पुस्तकप्रशस्तियों द्वारा निर्मित पट्टावली में आ चुके हैं। इस प्रकार श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पूर्णिमागच्छ की प्रधानशाखा की एक मात्र उपलब्ध पट्टाक्ली की प्रामाणिकता असंदिग्ध सिद्ध होती है। ग्रन्थप्रशस्तियों के आधार पर निर्मित पूर्णिमागच्छ प्रधानशाखा की गुरु-परम्परा की तालिका जयसिंहसूरि से प्रारम्भ होती है और जयसिंहसूरि के पूर्ववर्ती आचार्यों के नाम एवं पट्टानुक्रम श्री देसाई द्वारा प्रस्तुत पट्टावली से ज्ञात हो जाते हैं, अतः इस शाखा की गुरु-परम्परा की एक विस्तृत तालिका निर्मित होती है, जो इस प्रकार है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525012
Book TitleSramana 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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