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________________ 14 श्रमण, अक्टूबर-दिसम्बर, १८८३ जाहिर है कि जंगलों में रहने वाली इन आदिम जातियों का, जंगल में उगने वाले वृक्ष, पेड़, पौधे, लता वहां रहने वाले पशु, पक्षी, कीट, पतंग तथा आस-पास के पहाड़, पर्वत, नदी, नाले आदि के साथ, घनिष्ठ सम्बन्ध था। भारत के ऋषि-मुनियों, देवी-देवताओं, पवित्र ग्रंथों आदि की नामावली इस कथन की द्योतक है। ऋषभ, मांडूक्य (उपनिषद्) श्वेताश्वतर (उपनिषद्) तैत्तिरीय ( ब्राह्मण), पिप्लाद, औदुंबर, वत्स, गौतम, काश्यप, कौशिक, वाल्मीकि, हयग्रीव, औलूक्य, हलायुध, पशुपति, अरण्यानी, हनुमन्त, गजानन, शुनःशेप, सीता (हल पद्धति) इक्ष्वाकु, मत्स्य, कर्म, बराह आदि अवतार, पार्वती, वंशलता, वृक्षम्लिका शाबरी आदि विधाएँ, तिलोद्यमा आदि अप्सराएँ ये कुछ उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं। इसी प्रकार जैसे नन्दि वृषभ शिव से जुड़ा हुआ है, वैसे ही गरुड़ विष्णु से, हंस सरस्वती से, मूषक गणेश से और मयूर कार्तिकेय से जुड़े हुए हैं। ऐरावत हाथी और ऊंचे कानवाले अथवा उच्च स्वर से हिनहिनाने वाले इन्द्र के घोड़े की गणना मांगलिक पशुओं में की गयी है, अतएव उन्हें पूजा-अर्चना के योग्य बताया है। वृषभ, हाथी, घोड़ा, बानर आदि जैन तीर्थकरों के चिह्न इसी सम्बन्ध के द्योतक हैं। कल्पवृक्षों की भी यही सार्थकता है । कहते हैं कि पूर्वकाल में कल्पवृक्ष मनुष्य की प्रत्येक इच्छा पूरी करने में सहायक होते थे, उसे किसी प्रकार का श्रम नहीं करना पड़ता था । बिना कुछ किये धरे उसे स्वादिष्ट भोजन, बेश कीमती वस्त्र, मूल्यवान आभूषण, रहने के लिए सुन्दर घर, घर के काम में आने वाले बर्तन - भण्डे और कार्ग- मधुर संगीत का आस्वादन आदि सभी कुछ अनायास प्राप्त हो जाता था । जैन ग्रन्थों में दस प्रकार के कल्पवृक्षों का उल्लेख है। इससे पता लगता है कि आदिम समाज का प्रत्येक कबीला किसी-न-किसी पशु, पक्षी, वृक्ष, पौधे या कीट-पतंग से जुड़ा हुआ रहता था। उस पशु-पक्षी आदि को वह पवित्र समझता और उसका भक्षण करना उसके लिए सर्वथा निषिद्ध था । कबीले के इस चिह्न को टोटम, गणचिह्न, गोत्र अथवा कुल नाम से उल्लिखित किया गया है। उदाहरण के लिए, ओरांव जाति के कबीले पशु, पक्षी, मत्स्य, उरग और शाक नामक गोत्रों में विभाजित हैं। ये पशु आदि कभी किसी समय उक्त कबीले को किसी रूप में सहायक हुए होंगे, तभी से इनकी गणना टोटम या गोत्र में की जाने लगी। हिन्दुओं के लिए गोमांस वर्जित है, पड़वल जाति के लोग सांप का तुंबा भक्षण करने से परहेज करते हैं, मोरे जाति के लोग मोर का और सेलार बकरे का मांस नहीं खाते, गोडाबे आम की लकड़ी जलाने के उपयोग में नहीं लेते। छोटा नागपुर के ओरांब कबीले के लोगों का टोटम बानर है जिससे वे अत्यन्त सौहार्दपूर्ण व्यवहार करते हैं और उसे किसी तरह की हानि पहुंचाना, यहाँ तक कि उसे पालतू बनाकर रखना भी हेय मानते हैं | आदिम जातियों के जीवन - विकास में टोटम के महत्व को स्वीकार करते हुए "द स्पीकिंग ट्री" के लेखक रिचर्ड लैनोय ने कहा है "टोटम का चिह्न आदिमवासी जातियों का प्रकृति के साथ ऐसा ठोस सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करता है जैसा कि उनकी जाति-पांति भी नहीं करती।" -- इन आदिवासी कबीलों में प्रचलित उनके रीति-रिवाज, भाई-चारे के सम्बन्ध, कायदे-कानून, नीति-नियम एवं कथानक रूढ़ियां (मोटिफ अथवा अभिप्राय ) आदि इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525012
Book TitleSramana 1992 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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