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________________ जितेन्द्र बी. शाह की समीक्षा है। जो दर्शन के इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ न केवल जैन दर्शन अपितु भारतीय वाङ्मय का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में नयों के विवेचन और प्रस्तुतीकरण की जो शैली है, वह भी अभूतपूर्व है। इसके पूर्व और पश्चात् के किसी भी जैन दार्शनिक ग्रन्थ में इस शैली का अनुसरण नहीं पाया जाता है। इसका यह वैशिष्टय विद्वानों के सामने लाना आवश्यक था। यही सोचकर हमने इस ग्रन्थ को अपने शोध का विषय निर्धारित किया। इस ग्रन्थ का वैशिष्टय यह है कि इसमें नयचक की अवधारणा के माध्यम से उस युग के सभी दार्शनिक मतों को क्रमपूर्वक प्रस्तुत एवं समीक्षित किया गया है। इसमें नय शब्द एक-एक दर्शन परम्परा का परिचायक है। आचार्य मल्लवादी ने इन नयों का नामकरण एवं वर्गीकरण भी अपने ही ढंग से विधि, नियम आदि के रूप में निम्न बारह विभागों में किया है -- अर का नाम चर्चित विषय 1. विधिः अज्ञानवाद 2. विधि-विधिः कारणवाद 3. विध्युभयम् ईश्वरवाद 4. विधि नियमः कर्मवाद 5. विधि नियमौ द्रव्य-क्रियावाद 6. विधिनियम विधिः भेदवाद 7. उभयोभयम् अपोहवाद 8. उभयनियमः शब्दाद्वैतवाद/जातिवाद 9. नियमः सामान्य-विशेषवाद 10. नियमविधिः वक्तव्य-अवक्तव्यवाद 11. नियमोभयम् क्षणिकवाद 12. नियम नियमः शून्यवाद/विज्ञानवाद इसकी विशेषता यह है कि प्रत्येक 'अर (अध्याय) किसी दार्शनिक मतवाद को प्रस्तुतीकरण करता है, फिर दूसरे अर के आदि में उस दार्शनिक मत की समीक्षा प्रस्तुत की जाती है और उसके विरोधी मतवाद कर उद्भावन का उसका विधान किया जाता है। इस प्रकार क्रम से एक दर्शन की समीक्षा के आधार पर दूसरे दर्शन की उद्भावना करके समस्त भारतीय दर्शनों को एक चक्र के रूप में सुनियोजित एवं प्रदर्शित किया गया है। इस सब में जैन दर्शन की भूमिका को एक तटस्थ द्रष्टा के रूप में रखा गया है। उसमें नित्यवाद का खंडन अनित्यवाद से और अनित्यवाद का खंडन नित्यवाद से करवा कर यह स्पष्ट किया गया है कि उन मान्यताओं में क्या कमियां हैं। किन्तु नयचक्र की यह भी विशेषता है कि वह मात्र एक पक्ष का खंडन ही दूसरे पक्ष से नहीं करवाता है अपितु पूर्व पक्ष में जो गुण है उसे स्वीकार भी करता है। विभिन्न जैनेतर दर्शनों को ही नय मान कर इस ग्रन्थ की रचना हुई है। इस ग्रन्थ के वैशिष्टय के सम्बन्ध में पं. दलसुखभाई मालवणिया का कथन है कि ग्रन्थ में जैनेतर मन्तव्य जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525011
Book TitleSramana 1992 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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