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श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १०
सु तेज नो मंयक रुपि सेज तीय माण ए।।2।। सयंब नायका विचित्त रंभ रुवि दिद्वियं
पयोहरा उत्तगं पीन हेम कुंभ संठियां लचंति हंस की गया गयंद मत्त गामिनी
__ जुतेय नो मंयक रुवि सेज तीय मानिनी।।3।। सरो मंयक रुव तेय तिमिर मान खंडाणो।
अमी झारंति सयल लो ललाटि रेह मंडणो।। कलाव केश नय तुरंग रहसि विठाणये।
सु तेज नो मंयक रुव रहइ तीय मानिनी ( माणए)।।4।। ससिवदनी, सगुणंग अगिं चंदन चरचंती।
नव सत्तह संठवइ चित्ति पदमिनी विहसंती।। पटेंबर पंगुरण हार मुत्ताहल सोहइ।
कनक कलस कुच कठिन पिषि सुरनर मन मोहइ।। स्यामा सुरंग कवि पल्ह मणि, पिक वयणी पिउ पिउ चवइ ।
· संघाधिपति सहजपाल तनु सुतेजपाल सिजा रमइ।। 5 ।। इतिछंद।।
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- नाहटा ब्रदर्स, 4, जगमोहन मल्लिक लेन, कलकत्ता
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