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________________ ३८ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ (५) शब्द नय--शब्द के लिङ्ग, संख्या, कारक, उपसर्ग, काल आदि के भेद से वाच्यार्थ में भेद करना अर्थात् लिङ्ग आदि के व्यभिचार को दूर करने वाले वचन और ज्ञान को शब्द नय कहते हैं । भिन्न-भिन्न लिंग वाले शब्दों का एक ही वाच्य मानना लिंग-व्यभिचार है। जैसे-स्त्रीवाचक नारी (स्त्रीलिंग) और कलत्रम् (नपुंसकलिंग) ये भिन्न-भिन्न लिंग वाले होने से पर्यायवाची नहीं बन सकते। इसी तरह 'होने वाला कार्य हो गया' यहाँ काल व्यभिचार है, 'कृष्ण ने (कर्तृकारक) मारा' और 'कृष्ण को (कर्मकारक) मारा' यहाँ कृष्ण में कारक व्यभिचार है। (६) समभिरूढ़ नय -लिङ्गादि का भेद न होने पर भी शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर अर्थ-भेद करना समभिरूढ़ नय है । जैसे-- इन्द्र (आनन्दयुक्त), शक्र (शक्तिशाली) और पुरन्दर (नगर-विदारक) में; राजा (शोभायमान), भूपाल (पृथिवीपालक) और नृप (मनुष्यों का पालक) में लिङ्गादि-व्यभिचार नहीं है । अतः ये परस्पर एकार्थवाची होने से शब्दनय की दृष्टि से पर्यायवाची हो सकते हैं परन्तु इन शब्दों की व्युत्पत्ति भिन्न-भिन्न होने से समभिरूढनय की दृष्टि से ये एकार्थवाची नहीं हैं । अतः पर्यायवाची नहीं बन सकते। इस तरह शब्दभेद से अर्थभेद करना समभिरूढ़नय का कार्य है। . (७) एवम्भूत नय-जिस शब्द का जिस क्रिया रूप अर्थ हो, उस क्रियारूप से परिणत पदार्थ को ही ग्रहण करने वाला वचन या ज्ञान एवम्भूतनय है। इस नय की दृष्टि से सभी शब्द क्रियावाचक हैं । अतः शब्द के वाच्यार्थ का निर्धारण उसकी क्रिया के आधार पर किया जाता है । जैसे आनन्दोपभोग करते समय ही देवराज को इन्द्र कहना, अध्यापक जब पढ़ा रहा हो तभी अध्यापक कहना; आदि । ये सातों नय उत्तरोत्तर सूक्ष्म-विषयग्राही हैं। लक्षणा और व्यञ्जना वृत्तियों का प्रयोग नैगमनय के ही अधीन है। जब वस्तु का कथन किसी एक नय की दृष्टि से किया जाता है तो वहाँ अन्य नयों की दृष्टि को गौण कर दिया जाता है। नय वस्तु के एकांश या एक धर्म को ही ग्रहण करता है। प्रत्येक वस्तु में अनेक धर्म पाये जाते हैं जिनमें से एक-एक नय एक-एक धर्म को विषय करता है । यदि कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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