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________________ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ अवस्थायें ही हैं। पुनः ये गाथायें गोम्मटसार में १४ गुणस्थानों की विस्तृत चर्चा के ठीक पश्चात् आई हैं और इनके बाद सिद्धों की चर्चा है। विषय की दृष्टि से सप्रसंग होते हुए वहाँ ये गाथायें अनावश्यक ही प्रतीत होती हैं क्योंकि अयोगी केवली तक की चर्चा के बाद इन्हें दिया गया है। इनके देने का एकमात्र प्रयोजन इन गाथाओं के माध्यम से प्राचीन परम्परा को संरक्षित करना था। साथ ही यह निश्चित है कि ये गाथायें न तो षटखण्डागमकार की अपनी रचना हैं और न गोम्मटसार के कर्ता की। गोम्मटसार के कर्ता ने इन्हें षट्खण्डागम से लिया है और षटखण्डागमकार ने या तो इन्हें आचारांग नियुक्ति से लिया है या अन्य किसी प्राचीन स्रोत से । षट्खण्डागम मूलतः यापनीय कृति है और यापनीयों में नियुक्तियों के अध्ययन की परम्परा थी यह बात मूलाचार से भी सिद्ध होती है अतः सम्भावन यही है कि षट्खण्डागमकार ने इन्हें नियुक्ति से लिया हो। आचारांग नियुक्ति में ये दोनों गाथायें कहीं से अवतरित ही प्रतीत होती हैं, हो सकता है कि ये गाथायें पूर्व साहित्य या कर्म साहित्य के किसी प्राचीन ग्रन्थ का अंश रही हों और वहीं से नियुक्ति, तत्त्वार्थसूत्र और षट्खण्डागम में गई हों। चूंकि नियुक्तिसाहित्य एवं तत्त्वार्थसूत्र में गुणस्थानसिद्धान्त पूर्णतः अनुपस्थित है और रचनाकाल की दृष्टि से भी ये प्राचीन हैं - अतः कर्म निर्जरा के आधार पर आध्यात्मिक विकास की दस अवस्थाओं। गुणश्रेणियों का चित्रण करने वाली इन गाथाओं का अवतरण क्रम या पौर्वापर्य मेरी दृष्टि में इस प्रकार है- ... (१) पूर्व साहित्य का कर्म सिद्धान्त सम्बन्धी कोई ग्रन्थ (२) आचारांगनियुक्ति-आर्यभद्र, ई० सन् २री शती (३) तत्त्वार्थसूत्र--उमास्वाति, ई० सन् ३री-४थी शती (४) कसायपाहुडमुत्त-गुणधर, ई० सन् ४थी शती (५) षट् वण्डागम --पुष्पदंत-भूतबलि, ई० सन् ५वीं-६ठीं शती (६) गोम्मटसार -नेमिचन्द्र, ई० सन् १०वीं शती उत्तरार्ध । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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