SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास इनमें नहीं है। ये अवस्थाएं इस तथ्य की सूचक हैं कि पहले दर्शनमोह और चारित्रमोह का उपशम होता है और उसके बाद ही क्षय होता है । सीधे क्षायिक श्रेणी से आध्यात्मिक विकास करने की चर्चा इन १० अथवा ११ अवस्थाओं में नहीं है। साथ ही यह भी माना गया है कि उपशमकसम्यक् दर्शन और उपशमकसम्यक् चारित्र के बाद ही क्षायिकसम्यक् दर्शन और क्षायिकचारित्र का विकास होता है। इन अवस्थाओं का गुणस्थान सिद्धान्त के प्रकाश में अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि गुणस्थान सिद्धान्त की अवधारणाओं का विकास इन्हीं अवस्थाओं या गुणश्रेणियों से हुआ है। ___ यद्यपि षट्खण्डागम में गुणस्थान सिद्धान्त विकसित रूप में उपस्थित है-फिर भी उसमें उन बीजों को भी चूलिका सूत्रों के रूप में समाहित कर लिया गया है जिनसे इस सिद्धान्त का विकास हुआ है। इस सम्बन्ध में विशेष चर्चा तो हम अपने पूर्व लेख में कर चुके हैं। यद्यपि यहाँ इतना ज्ञातव्य है कि गुणस्थान सिद्धान्त के इन मूलबीजों को संग्रहीत करने की यह प्रवृति दिगम्बर परम्परा में आगे गोम्मटसार के काल तक चलती रही है-~~षट्खण्डागम चूलिका में उद्धृत ये दोनों गाथाएँ गोम्मटसार के जीवकाण्ड में गाथा क्रमांक ६६.६७ में उपलब्ध होती हैं। गोम्मटसार में ये गाथायें निम्न हैं सम्मत्तुप्पत्तीये, सावयविरदे अणंतकम्मंसे । दंसणमोहक्खवगे, कसाय उवसामगे य उवसंते ।। खवगे य खीणमोहे, जिणेसु दव्वा असंखगुणिदकमा। तविवरीया काला, संखेज्ज गुणक्कमा होति । जीवकाण्ड ६६-६७ इनमें दूसरी गाथा के दूसरे और चतुर्थ चरण में कुछ पाठभेद को छोड़कर सामान्यतया ये गाथायें षट्खण्डागम में उद्धृत गाथाओं के समान ही हैं मेरी दृष्टि में ये गाथायें षट्खण्डागम की चूलिका से ही उसमें ली गई हैं। क्योंकि इन गाथाओं के टीकाकार भी षट्खण्डागम के व्याख्यासूत्रों के अनुरूप ग्यारह अवस्थाओं का उल्लेख करते हैं, जबकि मल में आचारांगनियक्ति एवं तत्त्वार्थसत्र के समान दस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy