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________________ गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास १९ विकास की दस अवस्थाओं की अवधारणा बन चुकी थी, क्योंकि तत्त्वार्थ के पूर्व आचारांगनियुक्ति में भी यह अवधारणा उपस्थित है। यद्यपि षट्खण्डागम गुणस्थान सिद्धान्त का एक विकसित ग्रन्थ है फिर भी उसमें गुणस्थान सिद्धान्त की बीजरूप ये गाथायें भी समाहित कर ली गई हैं, जिनसे गणस्थान की यह अवधारणा विकसित हुई है । प्रस्तुत लेख में हमारा उद्देश्य षट्खण्डागम के विकसित गुणस्थान सिद्धान्त की चर्चा करना नहीं है, अपितु यह दिखाना है कि षट्खण्डागम में विकसित गुणस्थान सिद्धान्त के साथ-साथ वे बीज भी उपस्थित हैं जिनसे गुणस्थान की अवधारणा विकसित हुई है। अपने तत्त्वार्थसूत्र सम्बन्धी अध्ययन और लेखन के दौरान मुझे पं० परमानन्द शास्त्री का लेख 'तत्त्वार्थसत्र के बीजों की खोज' देखने को मिला। उसमें तत्त्वार्थसूत्र के सर्वार्थसिद्धि मान्य पाठ के नवें अध्याय के ४५वें सत्र, जिसमें कर्म-निर्जरा के आधार पर आध्यात्मिक विकास की उन अवस्थाओं का चित्रण है, के स्रोत के रूप में षट्खण्डागम के २१८ से २२५ तक के सूत्रों को उद्धृत किया गया है । यह सन्दर्भ अपूर्ण था, क्योंकि ये सूत्र मूल ग्रन्थ के किस खण्ड में है, यह नहीं बताया गया था। अतः यह सब देखने के लिए मैंने षट्खण्डागम के मूलपाठ को देखने का प्रयत्न किया । चकि प्रस्तुत सन्दर्भ में दी गई सूत्र संख्या भी प्रकाशित षटखण्डागम के अनुरूप न थी अतः मुझे पर्याप्त परिश्रम करना पड़ा या कहें तो षट्खण्डागम के मूल सूत्रों का पूरा परायण ही करना पड़ा। अन्त में मुझे षट्खण्डागम के चतुर्थ वेदनाखंड में उक्त सूत्र तो मिले, किन्तु वे ग्रन्थ का मूल भाग न होकर चूलिका के रूप में है। मेरा आश्चर्य तब और बढ़ा जब मैंने यह पाया कि ये सूत्र भी चुलिका की दो गाथाओं की व्याख्या के रूप में है। इस अध्ययन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि षट्खण्डागम के पूर्व प्रचलित गाथाओं में से ये दो गाथायें लेकर के उसकी व्याख्यास्वरूप इन सूत्रों की रचना हुई है। तत्त्वार्थ की इन दस अवस्थाओं के सन्दर्भ में पं० परमानन्द शास्त्री ने षट्खण्डागम के जिन सत्रों को दिया है और उनका जो क्रम बताया है वह प्रकाशित षटखण्डागम से मेल नहीं खाता है। १. अनेकान्त वर्ष ४, किरण १, वीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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