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________________ १२ श्रमण, अप्रैल-जून १९९२ यदि हम क्षपणशील और दर्शनमोहत्रिक (क्षीण) इन दोनों को अलग-अलग करते हैं तो यहाँ एक अवस्था बढ़ जाती है क्योंकि आचारांगनियुक्ति, तत्त्वार्थ आदि में दर्शनमोहक्षपक नामक एक ही अवस्था का चित्रण है। दर्शनमोहक्षपक और दर्शनमोहक्षीण ऐमी दो अवस्थाओं का चित्रण नहीं है। किन्तु यदि हम "तह य खवयसीलो य दंसणमोह तियस्स य" इस सम्पूर्ण पद को समास पद मानकर एक मानते हैं तो इसका अर्थ होगा-दर्शनमोहत्रिक क्षपणशील और ऐसी स्थिति में इसे दर्शनमोहक्षपक से तुलनीय माना जा सकता है किन्तु आगे चलकर जहाँ आचारांगनियुक्ति तत्त्वार्थ आदि में कषाय उपशमक उपशान्तकषाय, क्षपक और क्षीणमोह ऐसी चार अवस्थाओं का चित्रण है वहाँ कार्तिकेयानुप्रेक्षा में उपशमक, क्षपक और क्षीणमोह ऐसी तीन ही अवस्थाओं का चित्रण मिलता है। इसमें उपशान्तमोह का कहीं कोई उल्लेख नहीं है अतः यहाँ एक अवस्था कम हो जाती है उसमें उपशमक, क्षपक और क्षीणमोह ये तीन ही अवस्थायें शेष रहती हैं। अन्त में आचारांगनियुक्ति, तत्त्वार्थ आदि में जहाँ जिनका उल्लेख हुआ है वहाँ कात्तिकेयानुप्रेक्षा में कषायपाहुड़ और षट्खंडागम वेदनाखण्ड की चूलिका के व्याख्यासूत्रों के अनुरूप सयोगीकेवली और अयोगी केवली ऐसी दो अलग-अलग अवस्थाओं का उल्लेख हुआ है । हो सकता है कि इसकी संख्या को यथावत रखने के लिए कार्तिकेयानुप्रेक्षा में जहाँ एक ओर सयोगी और अयोगीकेवली का भेद किया गया वहीं दूसरी ओर उपशान्त अवस्था को छोड़ दिया गया हो । इस तुलनात्मक विवरण के विवेचन के पश्चात् नामों की स्पष्टता तथा सयोगी और अयोगी अवस्थाओं के विभाजन के आधार पर हम कह सकते हैं कि कात्तिकेयानुप्रेक्षा का यह विवरण आचारांगनियुक्ति और तत्वार्थसूत्र की अपेक्षा क्वचित् परवर्ती है और कसायपाहुड़ और षट्खण्डागम चूलिका के व्याख्यासूत्रों के समकालिक प्रतीत होता है। फिर भी १४ गुणस्थानों का स्पष्ट उल्लेख न होने के कारण हम कह सकते हैं कि यह कषायपाहुड़ का समकालिक और षट्खण्डागम का पूर्ववर्ती है । पुनः इसमें वर्णित ये दस अवस्थायें गुणस्थान सिद्धान्त से सम्बन्धित हैं, इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मूल ग्रन्थ में उपशान्तकषाय अवस्था का चित्रण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525010
Book TitleSramana 1992 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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