SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ श्रमण, जनवरी-मार्च १९९२ ओर ये सभी पारिवारिक सम्बन्ध व्यक्ति के दुःख और पीड़ा के कारण भी हैं। ऋषिभाषित में हमें पारिवारिक जीवन के प्रति पारस्परिक दायित्वों की कोई चर्चा नहीं मिलती है, किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि पारिवारिक सम्बन्धों और दायित्वों की विस्तृत चर्चा न होने का कारण, मलत: उसका संन्यास प्रधान या वैराग्य प्रधान दृष्टिकोण ही है क्योंकि निवृत्तिमार्गी परम्परा ने सदैव ही पारिवारिक जीवन को आध्यात्मिक साधना के क्षेत्र में एक बाधा ही माना था। उसमें पारिवारिक सम्बन्धों के प्रति विश्वसनीयता का भाव परिलक्षित न होकर अविश्वसनीयता का ही भाव दृष्टिगोचर होता है। इस सन्दर्भ में ऋषिभाषित के तेतलीपुत्र नामक अध्ययन का निम्न सन्दर्भ द्रष्टव्य है । वे कहते हैं कि श्रमण ब्राह्मण कहते हैं कि श्रद्धा (विश्वास) करना चाहिये किन्तु मैं कहता हूँ कि श्रद्धा ( विश्वास ) नहीं करना चाहिये। 'मैं' सपरिजन होकर भी अपरिजन हूँ, मेरे इन वचनों पर कौन विश्वास करेगा ? मैं पुत्र सहित होकर भी पुत्ररहित हूँ, मेरे इस कथन को कौन मानेगा? मैं समित्र होकर भी मित्र रहित हूं, इस बात पर कौन विश्वास करेगा? कौन इस बात पर विश्वास करेगा कि मुझे अपने स्वजन और परिजनों से विराग हो गया है ? कौन इस बात पर विश्वास करेगा कि जाति, कुल, रूप, विनय आदि से युक्त मेरी पत्नी मुझसे विमुख हो गई है। तेतलीपुत्र के उपयुक्त वचन स्पष्ट रूप से इस बात के सूचक हैं कि निर्वाण मार्ग के अभिलाषी के लिए ये समस्त पारिवारिक दायित्व निरर्थक बन जाते हैं। एक अनासक्त वीतराग पुरुष इन समग्र सम्बन्धों से ऊपर उठ जाता है। तेतलीपुत्र की दृष्टि में ये समस्त पारिवारिक सम्बन्ध विश्वसनीय नहीं हैं, क्योंकि ये सभी स्वार्थों पर आधारित होते हैं। जहाँ स्वार्थों की पूर्ति नहीं होती, या हितों की टकराहट होती है वहाँ ये समस्त सम्बन्ध टूटते हुए प्रतीत होते हैं। वैराग्यवादी जीवन दृष्टि के लिए पारिवारिक सम्बन्ध यथार्थ नहीं हैं, अपितु वे आरोपित हैं और जो आरो. पित हैं वे विश्वसनीय नहीं हैं। १. इसिभासियाई, १०-गद्यभाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy