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________________ श्रमण, जनवरी-मार्च, १९९२ ___ ऋग्वेद के दशम मण्डल के सूक्त १२९ में सूक्तद्रष्टा परमेष्ठी प्रजापति को मान्य किया है । वेदों में यजुर्वेद, अथर्ववेद में परमेष्ठी पद का उल्लेख प्रचुर मात्रा में दृष्टिगत होता है। इसमें भी अथर्ववेद में तो विशाल पैमाने पर भिन्न-भिन्न अर्थ संकुल में परमेष्ठी पद का प्रयोग हुआ है। अथर्ववेद की शौनकीय शाखा ही उपलब्ध होने से उसका वर्णन कर दिया गया है। किन्तु पैप्पलाद अथर्ववेद तो अनुपलब्ध होने से उसका संकेत मात्र ही प्राप्त होता है। अथर्ववेद में ब्रह्मा, प्रजापति, परमात्मा-परमेश्वर, अग्नि, धर्मोपदेशक, ज्ञानी, आदि अर्थों में परमेष्ठी पद ग्राह्य है, जबकि यजुर्वेद तथा सामवेद में प्रजापति अर्थ इष्ट है। अर्थ जो भी हो, सभी में परम-पद-प्राप्त अर्थात् जो परम पद में स्थित है, पूजनीय है, वंदनीय है, आदरणीय है, आचरणीय है, उसी पर परमेष्ठी पद की श्रद्धा केन्द्रित हुई है। __ वेदों के पश्चात् हम उपनिषद्-साहित्य में परमेष्ठी पद का निरूपण करेंगे। (ङ) परमेष्ठी त्वा सादयतु दिवस्पृष्ठे ज्योतिष्मतीम् । शुक्ल यजु० १५-५८ परमेष्ठी त्वा सादयतु दिवस्पृष्ठे व्यचस्वतीं। शुक्ल यजु० १५-६४ परमेष्ठी प्रजापतिमब्रवीदुपत्वाऽऽऽयानीति ...। यजु० त० सं० ५-७-५-५ (ज) स परमेष्ठीनमब्रवीदुपत्वाऽऽऽयानीति । वही, ५-७-५-६ विश्वकर्मा वयः परमेष्ठी छन्दो। वही, ४-३-५ (अ) प्रजापतिः परमेष्ठयधिपतिरासीत् । वही, ४-३-१०-३ (ट) विश्वं ज्योतिर्यच्छ परमेष्ठी तेऽधिपति: । वही, ४-४-६-१ (ठ) अयं मर्धा परमेष्ठी सुवर्चा: समानानामुत्तम श्लोको अस्तु । वही, ५-७-४-३ (ड) तं संदृक् प्रजापतिः परमेष्ठी विराजा । वही, ५-७-४-४ २. (क) परमेष्ठ्यधिपतिमृत्युर्गन्धर्वस्तस्य विश्वमप्सरसो भुवः । . वही, ३-४-७-२ (ख) परमेष्ठिो सौमापौष्णा: श्यामललामा स्तूपराः । वही, ५-६-१३-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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