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________________ श्रमण एवं ब्राह्मण परम्परा में 'परमेष्ठी' पद ગ્ तेरहवें काण्ड में परमेष्ठी से अभिप्राय परमात्मा का एवं वाचस्पति का है' तो पंचदश काण्ड में परमेष्ठी को पुनः स्वतन्त्र देवता कहा गया है । इस प्रकार हम देखते हैं अथर्ववेद में परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्म-ज्ञान, प्रजापति, ब्रह्मा, वाचस्पति आदि अर्थों में परमेष्ठी पद प्रयुक्त हुआ है । सायणाचार्य की अपेक्षा सातवलेकराचार्य ने परमेष्ठी का हार्द गूढ़तम सुन्दर रीति से खोला है । सामवेद में मात्र एक ही स्थल है, जहाँ पर परमेष्ठी पद का उल्लेख किया है । यहाँ परमेष्ठी प्रजापति अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है । अथर्ववेद, सामवेद के अतिरिक्त यजुर्वेद में परमेष्ठी पद का उल्लेख अनेकशः किया गया है। इसमें अधिकांश रूप से परमेष्ठी पद प्रजापति के लिए प्रयुक्त किया है । प्रजापति के अतिरिक्त ब्रह्म अर्थ भी परमेष्ठी का किया गया है। ५ १. ( क ) रोहितो द्यावापृथिवि जजान तत्र तन्तु परमेष्ठी ततान । अथर्व ० १३-१-६ ( ख ) यस्मिन् विराट् परमेष्ठी प्रजापतिरग्निर्वैश्वानर; सहः पङ्क्तया श्रितः । अथर्व ० १३-३-५ (ग) वाचस्पते पृथिवी नः स्योना स्योना योनिस्तल्पा नः सुशेवा । इहैव प्राणः सख्ये नो अस्तु तं त्वा परमेष्ठिन् पर्यग्निरायुषावर्चसा दधातु । १३-१-१७–१९ २. (क) तं प्रजापतिश्च परमेष्ठी च पिता च पितामहचापश्च श्रद्धा च वर्षं भूत्वानुव्यऽवर्तयन्तः । अथर्व० १५-७-२ ६१ ( ख ) स यत् सर्वानन्तर्देशाननु व्यचलत् परमेष्ठी । अथर्व ० १५-६-२४-२५ ३. मयि वर्चो अथोयशोऽथो यज्ञस्य यत्पयः । परमेष्ठी प्रजापतिर्दिवि द्यामिव दृहतु ।। सामवेद ६-३-३ ४. ( क ) परमेष्ठिनो वा एष यज्ञोऽग्र आसीत् तेन स तेन प्रजापति निरवासाययत् । यजु० तै० सं० १-६-९-२ (ख) परमेष्ठ्यभिधीतः प्रजापतिर्वाचि व्याहृतायामन्धोऽअच्छेतः शुक्ल यजु० ८-५४ (ग) विश्वकर्मा वयः परमेष्ठी छन्दो बस्तो । शुक्ल यजु० १४-९ (घ) भूतान्यशाम्यत्प्रजापतिः परमेष्ठ्यधिपतिरासील्लोकं ताऽइन्द्रम् । शुक्ल यजु० १४-३१ Jain Education International परमां काष्ठामगच्छत् For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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