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[ ३ ] मूल्य-बोध न तो कुर्सी और मेज़ के ज्ञान के समान तटस्थ ज्ञान है और न प्रेयसी के प्रति प्रेम की तरह मात्र भावावेश ही । वह मात्र इच्छा या रुचि का निर्माण भी नहीं है। वह न तो निरा तर्क है और न निरी भावना या संवेदना । मूल्यात्मक चेतना में इष्टत्व, सुखदता अथवा इच्छातृप्ति का विचार अवश्य उपस्थित रहता है, किन्तु यह इच्छा-तृप्ति का विचार या इष्टत्व का बोध विवेक-रहित न होकर विवेक-युक्त होता है । इच्छा स्वयं में कोई मूल्य नहीं, उसकी अथवा उसके विषय की मूल्यात्मकता का निर्णय स्वयं इच्छा नहीं, विवेक करता है, भूख स्वयं मूल्य नहीं है, रोटी मूल्यवान है, किन्तु रोटी को मूल्यात्मकता भी स्वयं रोटी पर नहीं अपितु उसका मूल्यांकन करने वाली चेतना पर तथा क्षुधा की वेदना पर निर्भर है। किसी वस्तु के वांछनीय, ऐषणीय या मूल्यवान् होने का अर्थ है-निष्पक्ष विवेक की आँखों में वांछनीय होना। मात्र इच्छा या मात्र वासना अपने विषय को वांछनीय या एषणोय नहीं बना देती है, यदि उसमें विवेक का योगदान न हो । मूल्य का जन्म वासना और विवेक तथा यथार्थ और आदर्श के सम्मिलन में ही होता है। वासना मूल्य के लिए कच्ची सामग्री है तो विवेक उसका रूपाकार। उसमें भोग और त्याग, तृप्ति और निवृत्ति एक साथ उपस्थित रहते हैं। इस सन्दर्भ में श्री संगमलाल जो पांडेय का मूल्यों की त्यागरूपता का सिद्धान्त भी एकांगी ही लगता है। उनका यह कहना कि "निवत्ति ही मूल्यसार है" ठीक नहीं है। मूल्य में निवृत्ति और संतुष्टि (प्रकृति ) दोनों ही अपेक्षित हैं। उन्होंने अपने लेख में निवृत्ति शब्द का दो भिन्न अर्थों में प्रयोग किया है, जो एक भ्रान्ति को जन्म देता है । क्षुधा की निवृत्ति या कामवेग को निवृत्ति में त्याग नहीं भोग है। पुनः इस निवृत्ति को भी सन्तुष्टि का ही दूसरा रूप कहा जा सकता है। [देखिए-दार्शनिक त्रैमासिक, जुलाई १९७६] ।
पुनश्च, यह मानना भी उचित नहीं है कि मूल्य-बोध में विवेक या बुद्धि ही एकमात्र निर्धारक तत्त्व है । मूल्य-बोध की प्रक्रिया में निश्चित ही विवेक-बुद्धि का महत्त्वपूर्ण स्थान है, किन्तु यही एकमात्र निर्धारक तत्त्व नहीं है। मूल्य-बोध न तो मात्र जैव-प्रेरणा या इच्छा से उत्पन्न होता है और न मात्र विवेक बुद्धि से। मूल्य-बोध में भावात्मक पक्ष का भी महत्त्वपूर्ण स्थान होता है, किन्तु केवल भावोन्मेष भी मूल्य-बोध नहीं दे पाता है। डॉ. गोविन्दचन्द्रजी पांडे के शब्दों में “यह (मूल्य-बोध) केवलभाव-सघनता या
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