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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org २ १ सस्वादन, सम्यक्- सस्वादन (सासादन) मिथ्या दृष्टि और अयोगी और अयोगी केवली अवस्था केवली दशा का पूर्ण का पूर्ण अभाव, किन्तु अभाव सम्यक्मिथ्या दृष्टि की उपस्थिति अपूर्व करण अप्रमत्तसंयत, अपूर्व- अप्रमत्तसंयत, ( निवृत्तिबादर) करण ( निवृत्ति बादर) अनिअनिवृत्तिकरण ( अनिवृत्ति वृत्तिकरण (अनिवृत्ति बादर ) बादर) जैसे नामों का अभाव जैसे नामों का अभाव उपशम और क्षय का उपशम और क्षपक का ८वें विचार है किन्तु ८वें गुण- विचार है किन्तु टवं गुणस्थान स्थान से उपशम और से उपशम श्रेणी और क्षपक क्षायिक श्रेणी से अलग श्रेणी से अलग-अलग आरोहण अलग आरोहण होता है होता है। ऐसा विचार नहीं ऐसा विचार नहीं है। है । पतन की अवस्था का कोई चित्रण नहीं पतन की अवस्था का कोई चित्रण नहीं ३ सस्वादन, सम्यक मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि ) और अयोगी केवली आदि का उल्लेख है अलग-अलग विचार उपस्थित श्रेणी पतन आदि का मूल पाठ में चित्रण नहीं है ४ उल्लेख है अलग-अलग श्रेणी विचार उपस्थित पतन आदि का व्याख्या में चित्रण है गुणस्थान सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास ४१
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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