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[ २२ ] पाश्चात्य दृष्टिकोण भारतीय दृष्टिकोण जैन दृष्टिकोण मूल्य
पुरुषार्थ जैविक मूल्य १. आर्थिक मूल्य
अर्थपुरुषार्थ अर्थ २. शारीरिक मूल्य
कामपुरुषार्थ काम ३. मनोरंजनात्मक मूल्य
सामाजिक मूल्य ४. संगठनात्मक मूल्य
धर्मपुरुषार्थ व्यवहारधर्म ५. चारित्रिक मूल्य
निश्चय धर्म आध्यात्मिक मूल्य
मोक्षपुरुषार्थ ६. कलात्मक
आनन्द ( संकल्प) अनन्त सुख एवं शक्ति ७. बौद्धिक
चित् (ज्ञान) अनन्तज्ञान ८. धार्मिक सत् (भाव)
अनन्तदर्शन इस प्रकार अपनी मूल्य-विवेचना में प्राच्य और पाश्चात्य विचारक अन्त में एक ही निष्कर्ष पर आ जाते हैं और वह निष्कर्ष यह है कि आध्यात्मिक मूल्य या आत्मपूर्णता ही सर्वोच्च मूल्य है एवं वही नैतिक जीवन का साध्य है।
यद्यपि भारतीय दर्शन में सापेक्ष दृष्टि से मूल्य सम्बन्धी सभी विचार स्वीकार कर लिये गये हैं, फिर भी उसकी दृष्टि में आत्मपूर्णता, वीतरागावस्था या समभाव की उपलब्धि ही उसका एकमात्र परम मूल्य है, किन्तु उसके परममूल्य होने का अर्थ एक सापेक्षिक क्रम व्यवस्था में सर्वोच्च होना है। किसी मूल्य की सर्वोच्चता भी अन्यमूल्य सापेक्ष ही होती है, निरपेक्ष नहीं । अतः मूल्य, मूल्य-विश्व और मुल्यबोध सभी सापेक्ष है।
निदेशक पूज्य सोहनलाल स्मारक पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी-५
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