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________________ ( १०४ ) सेवा में आपने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया इसलिए समाज हृदय से आपको चाहता था। आपके कुशल नेतृत्व में उसे विश्वास था। ___ आपका बाह्य व्यक्तित्व अत्यधिक नयनाभिराम था। उससे भी अधिक मनोभिराम था आभ्यन्तर व्यक्तित्व। आपकी मञ्जुल मुखाकृति पर चिन्तन की भव्य आभा सदा प्रस्फुटित होती थी। आपके तेजस्वी नेत्रों से सदा स्नेह सुधा बरसती थी। वार्तालाप में सरस शालीनता और गम्भीरता और हृदय की उदारता प्रतिबिम्बित होती थी । सरलता-सरसता का ऐसा मधुर संगम आपके जीवन में हुआ था जिसे निहारकर दर्शक प्रथम क्षण में ही श्रद्धा से विभोर हो उठता था। आपका जन्म महाराष्ट्र की वीर भूमि में हुआ। आपके पूज्य पिता श्री का नाम देवीचन्द जी था और मातेश्वरी का नाम हुलसा बाई था । नन्हीं उम्र में सद्गुरुवर्य रत्न ऋषि जी म० के पास आहती दीक्षा ग्रहण की। भारतीय धर्म और दर्शनों का गम्भीर अध्ययन किया। आपकी गम्भीर योग्यता को निहारकर ऋषि सम्प्रदाय ने अपना आचार्य बनाया। उसके पश्चात् पांच सम्प्रदाय के आचार्य बने । श्रमणसंघ बनने के पश्चात् आप श्रमण संघ के प्रधान मन्त्री और उपाध्याय पद ग्रहण करने के पश्चात् सन् १९६४ में श्रमण संघ के आचार्य सम्राट के पद पर आसीन हुए। जैन धर्म और परम्परा में आचार्य का गौरव सर्वाधिक रहा है । तीर्थकर के अभाव में आचार्य ही संघ का सम्यक संचालन करते हैं। वे तीर्थङ्कर के सदृश होते हैं । उनकी आज्ञा अनुलंघनीय होती है। आचार्य सम्राट् आनन्द ऋषि जी म० ऐसे ही सफल आचार्य थे। एक हजार से भी अधिक साधु साध्वी उनके कुशल नेतृत्व में आध्यात्मिक साधना में अग्रसर होते रहे हैं। भारत के विविध अञ्चलों में विचरण कर धर्म, समाज और राष्ट्र की गुरु गम्भीर ग्रन्थियों को सुलझाते रहे हैं। वृद्धावस्था के कारण वे चिरकाल से महाराष्ट्र की पावन पुण्य धरा अहमदनगर में विराज रहे थे। भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह जी, वर्तमान उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल जी शर्मा आदि भारत के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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