SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युग पुरुष आचार्य सम्राट आनन्द ऋषि जी म० -उपाचार्य देवेन्द्र मुनि युग पुरुष अपनी महानता, प्रियता और भव्यता से जन-जन के अन्तर्मानस में अभिनव आलोक प्रदान करता है। समाज की विकृति को नष्ट कर संस्कृति का प्रचार करता है। उसका अध्यवसाय अत्यन्त तीव्र होता है जिससे कण्टकाकीर्ण पथ भी सुगम और सरल बन जाता है। पथ के शूल फूल बन जाते हैं। विपत्ति सम्पत्ति बन जाती है। महामहिम राष्ट्रसन्त आचार्य सम्राट् सच्चे युग पुरुष थे। उनमें राम के समान संकल्प शक्ति, हनुमान के समान उत्साह, अंगद के समान दृढ़ता, महावीर के समान धैर्य, बाहबली के समान वीरता और अभय कुमार की तरह दक्षता थी। वे शेर की तरह दहाड़ते हुए अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर बढ़ते थे । ये अपने युग के सच्चे प्रतिनिधि थे। समाज विकास के लिए अन्ध-विश्वासों, अन्ध-परम्पराओं और मूढ़ता पूर्ण रूढ़िवाद से जूझते रहे। स्व-कल्याण के साथ पर-कल्याण के लिए सदा समर्पित रहे । शिवशंकर की तरह जहर के प्याले को पीकर समाज को सदा अमृत बांटते रहे। उनका स्वभाव निस्तरंग समुद्र की तरह था, जो कोलाहल से दूर रहकर भी विकास की तरंगों से तरंगित होता था। उनका विश्वास सृजनात्मक शक्ति में था। वे सदा विरोध को विनोद मानकर कार्य करते रहे। समुद्र यात्री को सदा तूफान का भय रहता है पर कुशल नाविक तूफानी वातावरण में भी नौका को अपने लक्ष्य तक ले जाता है। आचार्य प्रवर ऊफान और तुफान से कभी घबराये नहीं, किन्तु जागरूक रहकर अपने लक्ष्य तक समाज को बढ़ाते रहे। आप श्री ने समाज को नूतन विचार, नूतन चिन्तन और नूतन वाणी प्रदान की। समाज-समुत्कर्ष के हेतु अगणित कष्ट सहन किये पर कभी भी कृतित्व का अहंकार नहीं किया। अनासक्त योगी की तरह फल की आकांक्षा किये बिना कार्य करते रहे। समाज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525009
Book TitleSramana 1992 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1992
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy