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________________ ૬૪ सिद्धसूरि कक्कसूरि + श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ जिनचन्द्रगणि/ देवगुप्तसूरि [नरवदप्रकरण के रचनाकार ] Jain Education International कक्कसूरि [ पञ्चप्रमाण के कर्ता] I सिद्धसूरि देवगुप्त सूरि धनदेव / यशोदेव उपाध्याय [वि० सं० ११६५ / ई० सन् ११०८ में नवपदप्रकरणबृहद्वृत्ति के रचनाकार ] यशोदेव उपाध्याय ने वि० सं० ११७८ ई० / सन् ११२५ में प्राकृत भाषा में (६४०० गाथाओं) चन्द्रप्रभचरित की भी रचना की । ३. क्षेत्रसमासवृत्ति - ३००० श्लोक परिमाण यह कृति उपकेशगच्छीय सिद्धसूरि द्वारा वि० सं० ११९२ में रची गयी है । इसकी श्रीमत्युपाध्यायपदे निवेश्य, प्रख्यापयामास जनस्य मध्ये ||६|| तद्वचनेनारब्धा तस्यान्तेवासिना विवृतिरेषा । तत्रैवाचार्यपदं विशदं पालयति सन्नीत्या ॥७॥ लोकान्तरिते तस्मिंस्तस्य विनेयेन निजगुरु भ्रात्रा । श्री सिद्धसूरिनाम्ना, भणितेन समर्थिता चेति ॥८॥ उपाध्यायो यशोदेवो, धनदेवाद्यनामकः । जडोऽपि धाष्टर्यंतञ्चक्रे, वृत्तिमेनां सविस्तराम् ॥९॥ एकादशशत संख्येष्वब्देष्वधिकेषु पञ्चषष्टयेयम् । अणहिल्लपाटकपुरे सिद्धो केशीयवीरजिनभवने ||१०|| नवपदप्रकरण बृहद्वृत्ति की प्रशस्ति, प्रकाशक — देवचन्दलालभाई जैन पुस्त कोद्धार; ई० सन् १९२७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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