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________________ ५१ अपभ्रश के जैन पुराण और पुराणकार अवगत होता है कि वे माथुर संघी चन्द्रकीर्ति के मुनीन्द्र शिष्य थे। उनकी गुरु परम्परा इस प्रकार है- अमितगति-शान्तिसेन- अमसेन -श्रीषण-चन्द्रकीर्ति-अमरकीर्ति ।' ___ डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के अनुसार अमरकीर्तिगणि कृत नेमिनाथ पुराण में २५ सन्धियाँ हैं जिनकी श्लोक संख्या ६८९५ है। इस ग्रन्थ को कवि ने वि० सं० १२४४ भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को समाप्त किया है। वि० सं० १५१२ की इसकी प्रति सोनगिर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है। पन्द्रहवीं शताब्दी के अपभ्रंश भाषा के कवियों में महाकवि रइधू का नाम उल्लेखनीय है। रइधू काष्ठसंघ के माथुरगच्छ की पुष्करगणीय शाखा से सम्बन्ध थे। अपभ्रंश, संस्कृत और हिन्दी में इनकी ४० के लगभग रचनायें मिलती हैं। इनके पिता का नाम हरिसिंह, पितामह का नाम संघपति देवराज, माता का नाम विजयश्री तथा पत्नी का नाम सावित्री था, इनके एक पुत्र भी था जिसका नाम उदयराज था । डा० राजाराम जैन ने इनका समय वि० सं० १४५७१५३६ ( ई० १४००-१४७०) माना है। इनके द्वारा रचित अनेक पुराण उपलब्ध होते हैं १. पद्मपुराण-रामकथा को लेकर इन्होंने पद्मपुराण की रचना ई० श० १५ में की। इसमें रामकथा का जैन परम्परा के अनुसार वर्णन किया गया है। पद्मपुराण की हस्तलिखित प्रति आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में उपलब्ध है।" २. हरिवंश पुराण-कौरव-पाण्डवों की कथा को लेकर इन्होंने इस हरिवंश पुराण की रचना की।६ डा० विद्याधर जोहरापुरकर के अनुसार रइधू कृत इस हरिवंशपुराण से पता चलता है कि इनका मठ १. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० १५४-१५५ २. वही, पृ० १५८ ३. वही, पृ० १९८-१९९ ४. महाकवि रइधू के साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, पृ० १२० ५. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १४० ६. जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश, भाग ३, पृ० ४०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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