SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५० श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ पाण्डव, श्रीकृष्ण आदि महापुरुषों का जीवन चरित्र वर्णित है। अपने विषय वर्णन के लिये कवि ने आचार्य जिनसेन कृत हरिवंश पुराण का आश्रय लिया। महाकवि धवल विप्रवर्ण के थे। उनके पिता का नाम सूर, माता का नाम केसुल्ल और गुरु का नाम अम्बसेन था । ग्रन्थ की उत्थानिका में इन्होंने अनेक आचार्यों और उनकी ग्रन्थ रचनाओं का उल्लेख किया है उसमें काल की दृष्टि से सबसे अन्तिम कवि 'असग' है जिन्होंने अपना 'वीर चरित' शक सं० ९१० ई० सन् ९८८ में समाप्त किया था अतः यही कवि के काल की पूर्वावधि है। सम्भवतः हरिवंश पुराण के रचना का काल १०वीं शती होगा।२ डा० नेमिचन्द्र शास्त्री के मत से धवल कवि का समय शक संवत् की १० वीं शती का अन्तिम पाद या ११वीं शती का प्रथम पाद सम्भव है। कवि धवल कृत हरिवंश पुराण की हस्तलिखित प्रतियाँ श्री दिगम्बर जैन नया मन्दिर, दिल्ली; तेरहपन्थी दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिर शास्त्र भण्डार, जयपुर; बधीचन्द्र दिगम्बर जैन मन्दिर, जय पुर, दिगम्बर जैन मन्दिर पाटोदी शास्त्र भण्डार, जयपुर में उपलब्ध है। वि० सं० १०५० के लगभग हये कवि देवदत्त का नाम भी अपभ्रंश के रचयिताओं में मिलता है। कवि देवदत्त ने शान्तिनाथ पुराण की रचना की है। तेरहवीं शताब्दी में रचित पुराणों के अन्तर्गत अमरकीर्तिगणि कृत नेमिनाथ पुराण का उल्लेख जैन पुराणों में मिलता है। अपभ्रंशकाव्य के रचयिताओं में अमरकीर्तिगणि का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है । कवि की मुनि, गणि और सूरि उपाधियाँ थी जिससे ज्ञात होता है कि वे गृहस्थाश्रम त्याग कर दीक्षित हो गये थे। उनकी गुरु परम्परा से १. भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० १५५ २. वही, पृ० १५४-१५५ ३. तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा, भाग ४, पृ० ११९ ४. अपभ्रंश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ पृ. १७४ ५. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, भाग ४, पृ० २४३ ६. अपभ्रश भाषा और साहित्य की शोध प्रवृत्तियाँ, पृ० १८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy