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सूडा-सहेली की प्रेम कथा सुशोभित होती है अन्यथा अज्ञानी नाम सिर पर आ जाय तो सूविज्ञ विदूषी नारी. भी क्या करे ? इस प्रकार प्रणय-विवाह की लम्बी व्याख्या सुनकर सखियों ने कहा-आखिर यह तो कहो कि विदेश में रहे नर-रत्न को किस उपाय से प्राप्त करोगी? इस प्रकार से सहेली कुमारी की प्रतिज्ञा और सौन्दर्य-चर्चा सर्वत्र देश-विदेश में प्रसिद्ध हो गई।
विद्याधर पुरी में शुकराज कुमार ने सहेली के रूप की बात सुनी जिसका वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है"जिहां ते कुमार अहि जेणि नगरि,
बात गई तिहां भमति नगरी। कपि जसी रंभा अपछरी,
नाग लोक नारी अवतरी ।। ४७॥ अलिकलि लिहि किवीण,
विसहर लरि भनाव्योतेणि । वदन जिसु पुनिन नु चन्द,
__ मोहन वेलि तणऊ किच कंद ॥४८॥ लोचन वाण जिस्या भालडी,
सीगणि भयण तणी भमुहड़ी। आठमि चन्द तणि . परिमाल,
नासा वंश माहा गणी आल ।। ४९ ॥ अधर प्रवाली सललत वली,
दन्त जिसा दाडिमनीकुली। युगल पयोधर सोवन कुंभ,
जांघ नसी कदली नु थंभ ॥ ५० ॥ गुणवती चालि गजगति,
भयण तणा मोहष मलपति । वेणी विसहर मणि वाखड़ी,
आँजवलि आखड़ी ॥ ५१ ॥ चन्द मुखि चंपक बांनि,
झब-झब झबकि कुंडल कानि ।
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