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________________ २८ श्रमण, जुलाई-सितम्बर, १९९१ वह जल-विहीन मछली की भाँति तड़पने लगी और आँखें श्रावण के मेघ की भाँति बरसने लगीं। विरहानल-दग्ध नवयौवना को पपीहा के पीऊ-पीऊ स्वर शल्य की भाँति खटकने लगे। उसे शीतल वायु चन्दन और चन्द्रमा की शुभ्र ज्योत्स्ना नहीं सुहाती और वह कुम्हलाई हुई रहने लगी। कभी वह प्रियतम से स्वप्न में पुनः मिलने के लिए नींद लेने का उपक्रम करती पर आँखों से नींद सर्वथा दुर्लभ हो गई। उसका हृदय पक्षी की भाँति आकाश में उड़ रहा था, अब स्वप्न की आशा कहाँ ? उसके और प्रियतम के बीच नदी-नाले और पर्वत-श्रेणी का अवरोध था अतः चरणों से उन्हें उल्लंघन कर जाना अशक्य होने से वह सारस पक्षी से पंखें मांगने लगी, जिसके द्वारा वह प्रियतम से जा मिले। वह जब सखियों से बोलचाल, हास्य-क्रीड़ा बन्द कर अनमनी रहने लगी तो सखियों ने उससे पूछा कि तुम्हारी यह दशा क्यों? क्या माता-पिता ने कोई कष्टकारी बात कही है या अन्य कोई कारण है ? ___ सहेली ने लज्जा त्याग कर सखियों से स्वप्न में शुक्रराज से मिलने की बात बतलाते हुए कहा कि मै अपने इसी इच्छित वर के सिवाय किसी से पाणिग्रहण नहीं करूँगी। यह मेरा अटल नियम समझो। दैव भी कैसे हैं, सदृश जोड़ी न मिलाकर सद्गुणी को गुणहीन और गुणहीन को सद्गणी नारी देता है। माता-पिता पूछते नहीं; रूप-कुरूप न देखकर, ढकना ढक देते हैं, ज्योतिषी भी खोटे हैं। ऐसी स्थिति में कैसे काल निर्गमन हो? रायणी ( फल ) से रीगणीसदल सुरंग होने पर भी गुण बिना कोई स्वीकार नहीं करता। परमात्मा की प्रसन्नता हो तभी सरीखी और मनपसन्द जोड़ी मिलती है। सहेली कहने लगी --शिक्षित-संस्कारित पुरुष के न मिलने पर वह सूखे शाल-काष्ठ की तरह जलती है। लोहार के घर गया रत्न भी कोयले के साथ घान किया जाकर अंगार हो जाता है । मूर्ख के यहाँ गुणों का विनाश ही होता है । कौवे के गले में हार और कीचड़ में पड़ी चुनड़ी की भाँति अयुक्त जोड़ी से विनाश ही होता है । अतः मैं तो उसी मनपसन्द व्यक्ति से ब्याह करूँगी अन्यथा अग्निशरण कर जाऊँगी। जैसे मानसरोवर में हंस की, सत्पुरुष से वंश की, सोने में जड़े हुए हीरे की और गंगा नदी में निर्मल जल की शोभा है वैसे ही पति-पत्नी सरीखी जोड़ी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525007
Book TitleSramana 1991 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size7 MB
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