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________________ श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ चाण्डाल जैन आगमों में चाण्डालों की बस्ती का उल्लेख है, इनसे सभी लोग घृणा करते थे' । चाण्डालों को पापकर्म करने वाला, अत्यन्त भयानक एवं क्रूरकर्मा बताया गया है। चोरी और हत्या इनके लिए सामान्य बात थी। कहा गया है कि दुर्लभ मनुष्य जीवन पाकर भी आर्यत्व पाना दुर्लभ है क्योंकि मनुष्य होकर भी बहुत से लोग दस्यु और म्लेच्छ होते हैं। दुष्कर्मों के संचय के कारण व्यक्ति को अगले भव में मातंग (चाण्डाल) कुल में जन्म लेते हुए दिखाया गया है। ये कूटग्राही तथा मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों के सेवन में सम्बन्धों का विचार किये बिना ही (भाई-बहन के मध्य ही) संसर्ग करने वाले होते थे। चाण्डाल शवों को फेंकने का कार्य करते थे। अतः ब्राह्मणों द्वारा इन्हें अदर्शनीय कहकर भगा दिया जाता था । भिल्ल, डोंब, बोधित तथा लोहकार आदि जातियाँ__इनमें भीलों के पास अपने किले होते थे जिसे भिल्लकोटि या भिल्लपल्ली कहा गया है। ये असभ्य एवं जंगली लोग व्यापारियों एवं यात्रियों के लिए हमेशा खतरा बने रहते थे। डोंब जाति के लोग खले मैदानों में रहते थे और हमेशा आपस में लड़ा करते थे। इनकी नियुक्ति हाथियों की देखभाल के लिए की जाती थी। वर्तमान में इस जाति को मद्रास में द्रम्ब और उत्तर प्रदेश, बिहार एवं बंगाल में डोंब के नाम से जाना जाता है । बोधितों का निवास स्थान मालव प्रदेश के आसपास बताया गया है। ये लोग पेशे से चोर या डाकू १. उत्तराध्ययनसूत्र, १३।१६, पृ० १२४ २. ज्ञाताधर्मकथासूत्र, १।२।६, पृ० ११० ३. उत्तराध्ययनसूत्र, १०।१६, पृ० ८६ ४. विपाकसूत्र, पृ० ६३-६४ । ५. अन्तकृतदशांगसूत्र, ३।२६, पृ० ८८ ६. उत्तराध्ययनसूत्र, १२१७, पृ० १०७ ७. निशीथचूर्णि, ४, पृ० १५१; १, पृ० १४४ ८. वही, ३, पृ० २७०, ४३६ ९. मधुसेन, ए कल्चरल स्टडी आफ निशीथचुणि, पृ० ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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