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________________ ६५ हिसक पेशेवर जातियाँ हिंसक पेशेवर जातियों के लोग विविध पशु-पक्षियों का शिकार करके अपनी उदरपूर्ति करते थे तथा उसका विक्रय करके धनार्जन करते थे । इनमें सूअर का शिकार करने वाले ( सोयरिया), जल में से मछलियों को मारने अथवा पकड़ने वाले मच्छीमार (मच्छबन्धा), पक्षियों का शिकार करने वाले बहेलिए ( साउनिया ), व्याघ्र - हिरणों का शिकार करने वाले (वाहा), मधुमक्खियों से शहद एकत्रित करने वाले (महुधाया), चाण्डाल विशेष ( कूडछेलियहत्था हरिएसा ) तथा भील आदि वनचर ( वणचरगा ) उल्लेखनीय हैं । राजप्रश्नीयसूत्र में, उल्लेख है कि भीलुंगा नामक जाति के लोग द्विपदों, चतुष्पदों, मृगों एवं अन्य पशु-पक्षियों तथा सर्पों आदि के रक्त और मांस का सेवन करते हुए पापकर्मों में रत रहते थे । १ म्लेच्छ - आगमों में वर्णित जातिगत समता ―― जैन सूत्रों में म्लेच्छ जाति ( मिलक्ख ) ३ का प्रयोग प्रायः उन हिंसक लोगों के लिए किया गया है, जो विविध तरीकों से जीवों को पकड़कर उनका आहार करते थे तथा उसीसे अपना जीविकोपार्जन करते थे । ये लोग आर्य जनपदों की सीमा पर निवास करते थे तथा विचित्र रीति-रिवाजों में संलग्न रहने के कारण आर्यों की दृष्टि में घृणा के पात्र समझे जाते थे । चाण्डाल, मातंग और श्वपाक घृणा एवं अपकीर्ति के पात्र थे क्योंकि वे भोज्य पदार्थों से सम्बन्धित-वर्जनाओं को नहीं मानते थे । ये लोग वीभत्स रूप वाले, काले, विकराल, बेडौल मोटी नाक वाले, अल्प एवं मलिन वस्त्र धारण किए, धूल धूसरित होने से भूत की तरह दिखाई देने वाले, गले में संकरदूष्य अर्थात् कूड़े के ढेर पर से लाये गये निकृष्ट वसन धारण किये रहते थे । દ १. प्रश्नव्याकरणसूत्र, अ० १, पृ० ६७-६८ । २. राजप्रश्नीयसूत्र, २२६, पृ० १४७ । Jain Education International ३. प्रश्नव्याकरणसूत्र, अ० १, पृ० ६८ । ४. आचारांगसूत्र, २।३।४७१, पृ० १७५ । ५. निशीथचूर्णि, ३, पृ० ५२७; व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, १।३।१, पृ० २८३ ॥ ६. उत्तराध्ययन सूत्र, १२६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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