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________________ ऋग्वेद में अहिंसा के सन्दर्भ रक्षा की अनेक प्रार्थनाएँ प्राप्त होती हैं । ऋग्वेद के सातवें मण्डल का सम्पूर्ण ३४वाँ एवं ३५वाँ सूक्त आत्मकल्याण एवं शान्ति प्रदान करने की प्रार्थना से ओत-प्रोत है। ऋग्वेद के पंचम् मण्डल के ५१वें सूक्त के मन्त्र ११ से लेकर १५ तक सभी ऋचाओं में अश्विनदेव, देवी अदिति, पूषा आदि सभी देवताओं से ऋषि ने आत्मकल्याण की कामना की है। इसी प्रकार सहित की कामना का भाव भी पाँचवें सूक्त के मन्त्र १ से ४ में अनुस्यूत है। अतः हम देखते हैं कि वैदिक ऋषियों के अहिंसापरक स्तुतियों के मूल में आत्मकल्याण की भावना ही प्रमुख रूप में विद्यमान है। "अहिंसा" मार्ग के अनुयायियों का प्रमुख उद्देश्य भी आत्मकल्याण ही होता है । वस्तुतः हिंसा करने वाला व्यक्ति या आततायी दूसरे का अनिष्ट करने से पहले अपना ही अनिष्ट करता है, हृदय में हिंसा का विकार उत्पन्न करके पतनोन्मुख हो जाता है और दूसरों को अपना शत्रु बना लेता है। इस प्रकार वह अपनी ही हिंसा करता है। इसके विपरीत यदि कोई अहिंसा सिद्धान्त का व्यवहार करता है, तो विकाररहित हृदय से समस्त प्राणियों को समभाव या समदृष्टि से देखता है और ऐसी स्थिति में शत्रुभाव के स्थान पर विश्वबन्धुत्व की भावना स्थापित होती है। सम्भवतः अहिंसा के समग्र स्वरूप को ध्यानस्थ करके ही प्रथम मण्डल में कहा गया है - ___ "प्रति भद्रं भद्राय" अर्थात्--जो मनुष्य दूसरे का कल्याण करते हैं, उनके प्रति भी कल्याण की भावना होती है। अहितकारियों का कभी कल्याण नहीं होता। उपसंहार ___ ऋग्वेद के समग्र अध्ययन से ज्ञात होता है कि ऋग्वैदिक यज्ञों में पशुबलि का विधान था, किन्तु पशुबलि की प्रक्रिया एवं उद्देश्य के विषय में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यज्ञों में पशुबलि होती थी और कुछ विद्वानों की मान्यता है कि उनकी प्रतीकात्मक बलि चढ़ाई जाती थी। कुछ भी हो, इतना तो निश्चित ही है कि १. युधिष्ठिर मीमांसक-वैदिक सिद्धान्तमीमांसा, पृ० ३५४-३६९ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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