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________________ अहं परमात्मने नमः सूत्र) तात्पर्य की दृष्टि से अहं सिद्धचक्र का आदिबीज है। सिद्धचक्र का आदिबीज कहने का प्रयोजन है कि समस्त बीज मन्त्रों में यही आदि है। इस सिद्धचक्र में अहंकार प्रथम बीज है। इसी को 'सकलागमोपनिषद्भूतम्' कहा जाता है-अर्थात् सभी आगम उपनिषदों का सार । उपनिषदों के संदर्भ में हेमचन्द्राचार्य कहते हैं अकारेणोच्यते विष्णू रेफे ब्रह्मा व्यवस्थितः । हकारेणहरः प्रोक्तस्तदन्ते परम पदम् । (अकार से विष्णु, रेफ से ब्रह्मा और हकार से शिव और अनुस्वार परम पद वाचक है) क्षेम, इस लिए कहा गया है कि यह धर्म क्रियासाधना में समस्त विघ्नों की विनष्टि करने वाला है-सम्पूर्ण विनष्टि/ अशेष । इसी से उसे क्षेमकर कहा गया है। योग की दृष्टि से अर्ह कल्पवृक्ष है, जिस प्रकार कल्पवृक्ष से वांछित फल संकल्प मात्र से प्राप्त होते हैं उसी प्रकार अर्ह से भी। कल्पवृक्ष के नीचे अमृत की वांछा से अमृत और मृत्यु की इच्छा से तत्काल मृत्यु प्राप्त होती है । संकल्प मनुष्य को समाधि की ओर व विकल्प व्याधि की ओर ले जाता है। फल तीन प्रकार का कहा जाता है :-क्रियोत्पन्न, पुण्योत्पन्न एवं 'क्रियोत्पन्न एवं पुण्योत्पन्न' । दृष्ट फल वह है जो क्रिया विशेष से उत्पन्न होता है, अशुभ विचार, आचार से अशुभ की प्राप्ति होती है । अदृष्ट फल पुण्य विशेष से प्राप्त होता है। तृतीय तो व्यंतर देवों को ही मिलता है। यहां कल्पवृक्ष कहने का तात्पर्य है कि सभी कल्पों का समुदित फल एक साथ ही देने में अहं समर्थ है। अहं का प्रणिधान स्वाध्याय के प्रारम्भ से समाप्ति तक करना चाहिए । प्राणिधान के दो भेद हैं- अहं के साथ आत्मा का चतुर्दिक संभेद और परमेष्ठि के साथ अभेद । प्रणिधान चार प्रकार का होता है-पदस्थ, पिंडस्थ, रूपस्थ और रूपातीत । अह में व्याप्त श्री अरिहंत का ध्यान पदस्थ होता है, 'अनेनात्मनः सर्वतः' संभेद इत्युक्त पदस्थम्शरीरस्थ ध्यान पिण्डस्थ, प्रतिमा रूप में रूपस्थ और योगीगम्य रूपातीत है । योगसूत्र में श्री हेमचन्द्राचार्य ने इसकी विशेष व्याख्या की है, जिस पर आगे विचार करेंगे। संभेद प्रणिधान में भेद होता है, यह भेद संश्लेष अन्यथा सम्बन्ध रूप से होता है। परमेश्वर परमेष्ठि के साथ आत्मा का एकीभाव अभेद प्रणिधान होता है। जिस प्रकार सूर्य समस्त जगत को ज्योतिर्मय करता www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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