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________________ ४७ ऋग्वेद में अहिंसा के सन्दर्भ है।' ऋग्वेद में वेदमन्त्र (ज्ञान) के द्वेषी को "ब्रह्मद्विषः" कहा गया है और ऐसे ब्रह्मद्वेषी पर तपा हुआ अस्त्र फेंकने की भी प्रार्थना की गयी है । ऋग्वैदिक ऋषि अग्निदेव से द्रोह करने वाले, निन्दा करने वाले एवं परिवाद करने वाले से अपनी रक्षा की प्रार्थना करता है ___ “दहाशसो रक्षसः पाह्यश्स्मान्दुहो निदो मित्रमहो।" । ऋग्वेद में स्थल-स्थल पर द्वेष का निषेध किया गया है तथा ईश्वर से दुष्टकर्म करने वाले एवं दुःख देने वाले द्वेष भावों को दूर कर कल्याणकारी मार्ग प्रशस्त करने की प्रार्थना की गयी है-- ___ “शिवा नः सर व्यासन्तु भ्रात्राग्ने देवेषु युष्मे ॥"३ अर्थात् हे अग्नि ! हमारे सखाओं और भ्रातृसम्बन्धी कर्म द्योतमान तुममें मंगलकारी हो। वस्तुतः द्वेष ही हिंसा का जनक है, इसके बिना हिंसा का अस्तित्व नहीं होता है। इसीलिए स्थल-स्थल पर द्वेष की भावनाओं को दूर करने की प्रार्थना ईश्वर से की गयी है __ "विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।'४ वैदिक ऋषि द्वेष की भावना को ही सब प्रकार की हिंसा का मूल मानते हैं और हृदय से द्वेष, द्रोह आदि मनोविकारों का मूलोच्छेदन ही अहिंसा सिद्धान्त के पालन का प्रथम सोपान मानते हैं। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल में अग्नि से द्वेष की भावनाओं को दूर करने की प्रार्थना की गयी है - ___ "अप द्वेषांस्या कृधि ॥"५ द्वष के समाप्त होने पर ही अहिंसा साधक का अन्तःकरण शुद्ध एवं सात्विक भाव से ओतप्रोत होगा, और तभी वह अहिंसा सिद्धान्त के सूक्ष्म रूप की ओर उन्मुख होगा। वैदिक ऋषि की मान्यता है कि १. ऋग्वेद-६१५३।९, १०१२०११ २. ऋग्वेद-६।५२।३ ३. ऋग्वेद-४।१०१८ ४. ऋग्वेद-५।८२।५ ५. ऋग्वेद-३।१६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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