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________________ ३१ वसन्तविलासकार बालचन्द्रसूरि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रकाश डाला गया है । विवेक द्वारा मन-शुद्धि के चार कारणों का उल्लेख है । - (क) चार कारणों की प्रतिपत्ति (ख) गुणों का सच्चा अनुमोदन ( ग ) दुष्कृत्य एवं पापों की निन्दा एवं (घ) १२ भावनाएं, ये सविस्तार वर्णित हैं । तीर्थंकर, सिद्ध, साधु और धर्म - इन चतुष्टयों को 'मंगल' और इनकी शरण में जाने के लिए कहा गया है । बालचन्द्रसूरि ने इस कृति पर एक वृत्ति लिखी है । वि० सं० १३२२ (१२६५ ई०) की एक हस्तलिखित प्रति प्राप्त हुई है । ' मूलग्रन्थ में उद्धृत दृष्टान्तों के स्पष्टीकरण के लिए - बाहुबलि, सनत्कुमार, स्थूलभद्र, सीता, दमयन्ती, विलासवती और नर्मदा सुन्दरी आदि छोटी-बड़ी कथाएं दी गयी हैं । चार कारणों को चार द्वार कहकर वृत्तिकार ने प्रत्येक द्वार के लिए "परिमल" संज्ञा का प्रयोग किया है। (४) उपदेशकन्दलीवृत्ति - -- जैन महाराष्ट्री प्राकृत में रचि । अस कवि की एक कृति है, जिसमें १२५ पद्य हैं, जो भिन्न-भिन्न प्रकार के उपदेशों से परिपूर्ण हैं । इस वृत्ति की वि० सं० १२९६ (१२४० ई०) में लिखी एक हस्तलिखित प्रति प्राप्त होती है । इस वृत्ति की रचना में देवानन्द गच्छ के कनकप्रभ - शिष्य प्रद्युम्न एवं बृहद्गच्छ के धनेश्वरसूरि के शिष्य पदमचन्द ने सहायता की थी । बालचन्द्रसूरि ने वृत्तिभाग में चन्द्रगच्छ से सम्बन्धित सभी जैनाचार्यों का क्रमानुसार विवरण दिया है। इसमें १४२ श्लोकों में चन्द्रगुप्त तथा प्रद्युम्नसूरि से लेकर बालचन्द्रसूरि तक सभी आचार्यों का उल्लेख है । समोक्षा बालचन्द्रसूरि की समस्त कृतियों पर विहङ्गम दृष्टिपात करने से परिज्ञात होता है कि इनकी रचनाएं सूक्ष्म से स्थूल की ओर अग्रसर होती गयी है । इनमें शब्दार्थ - वैचित्र्य एवं भावों की परिपक्वता का - १. जैन - साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग ४, पृ० २१६ २ . वही, पृ० १९८ ( ३५वें अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन, हरिद्वार के लिए प्रस्तुत एवं पठित शोध-पत्र ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525006
Book TitleSramana 1991 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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