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श्रमण, अप्रैल-जून, १९९१ खित लेख से इनका परिचय प्राप्त होता है । प्रथम प्रतिमा-पाषाण पर उल्लिखित लेख में बालचन्द्र-पण्डितदेव के दीक्षागुरु नेमिचन्द्र भट्टारक तथा ऋतुगुरु-अभयचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती का वर्णन है । जैन शिलालेखों में बालचन्द्र को जैन-धर्म का विस्तार करने वाला कहा गया है
श्रीमन्मान्य-भयेन्द्रयोगिविबुध-प्रख्यात-सत्-सूनुना।
बालेन्दु-बतिपेन तेन लसति श्री जैन धर्मोऽधुना ॥ बालचन्द्र पण्डितदेव का कविजन भी समादर करते थे
तं बालचन्द्र-मुनि-पण्डित देवमस्मिन् ।
लोके स्तुवन्ति कवयः परमादरेण" । बालचन्द्र-पण्डित देव की मृत्यु, शक सं० ११९७ में समाधि-मरण द्वारा भाद्रपद द्वादशी बुधवार को मध्याह्नकाल में हुई थी।
हेमचन्द्राचार्य की शिष्य-परम्परा के अन्तर्गत "बालचन्द्रगणि" का नाम भी इस सन्दर्भ में विशेष उल्लेखनीय है। इन्होंने "स्नातास्था" नामक काव्य का प्रणयन किया था।
उपर्युक्त दोनों उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि वसन्तविलास महाकाव्य के रचयिता बालचन्द्रसूरि और जैन मुनि बालचन्द्र पण्डित-देव एक दूसरे से भिन्न थे। यद्यपि बालचन्द्र पण्डितदेव ने भी साहित्यजगत् में पदार्पण किया था, किन्तु वसन्तविलास महाकाव्य से उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। इस सम्बन्ध में अन्य प्रमाण भी प्राप्त नहीं होते हैं। इसी प्रकार बालचन्द्रगणि का समय भी बालचन्द्रसूरि से बहुत पहले का है। सिद्धराज जयसिंह और कुमारपाल की कई पीढ़ियों
१. वही, भाग-३, लेख संख्या ५३८, पृ० ३८५-८६ २. वही, लेख संख्या ५२४, पृ० ३७१ ३. वही, लेख संख्या ५१४, पृ० ३६४ ४. वही, लेख संख्या ५१४, पृ० ३६५ ५. वही, लेख संख्या ५१४, पृ० ३६४ "श्रीमद्बालचन्द्रपंडितदेवरू सकवर्षे
११९७ नेयभावसंवत्सरद भाद्रपद-शुद्ध १२ बुधवारद मध्यान्हकालदोल
यमगे समाधियन्दुः । ६. आचार्य हेमचन्द्र (डॉ० वि० भा० मुसलगांवकर) पृ० १९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only
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