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वसन्तविलासकार बालचन्द्रसूरि : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
-डॉ. यदुनाथ प्रसाद दुबे पुराण, दर्शन, नाटक, खण्डकाव्य, प्रबन्धकाव्य, चम्पूकाव्य एवं विपुल स्तोत्र-साहित्यादि नानाविधात्मक काव्य-विधाओं के अतिरिक्त श्री तथा भगवती सरस्वती-दोनों के कृपापात्र, नरनारायणानन्द महाकाव्य के प्रणेता, गुर्जर धरित्री के चौलुक्यवंशीयनृपति वीरधवल के शासन-काल के अप्रतिम प्रतिबिम्ब, सोमेश्वरकृत “कीर्तिकौमुदी', अरिसिंह प्रणीत “सुकृतसंकीर्तन' आदि काव्यों में वर्णित प्रशस्तियों, तीर्थयात्राओं, धार्मिक तथा लोकोपकारी कृत्यों से अजित, दिग्दिगन्तश्रूयन्त यशः वैजयन्ती से समलङ्कृत, लोकविश्रुत महामात्य वस्तुपाल के चरितनायकत्व से प्रसिद्ध वसन्तविलास नामक महाकाव्य श्रेष्ठतर है। ___ जैन-साहित्य में बालचन्द्रसूरि से मिलते-जुलते कई अन्य नाम भी प्राप्त होते हैं। जैन शिलालेखों में 'बालचन्द्र" नामक एक जैनमुनि का बहुशः उल्लेख किया गया है जो "बालचन्द्रपण्डित देव' के नाम से प्रसिद्ध थे। वृत्ति एवं काव्य-कला में प्रवीण इन्होंने “सारचतुष्टय" एवं अन्य ग्रन्थों की टीका की थी। हुम्मच कन्नड, पद्मावती मन्दिर के प्राङ्गण में पाषाण पर इनकी प्रशंसा इस प्रकार उत्कीर्ण है
'कवित्वे गमकित्वे च वादित्वे, वाग्मिता-जपे ।
त्रैविद्य-बालचन्द्रस्य सदृशो नास्ति इह नास्ति इह ।। इनका सम्बन्ध दिगम्बर जैन सम्प्रदाय से था। हेलीबीड, शक १२२२ (१३०० ई०) के वस्तिहल्ल में दूसरी प्रतिमा-पाषाण पर उल्लि१. जैनशिलालेख-संग्रह (संग्रहकर्ता, पं० विजयमूर्ति), भाग ३, लेख संख्या
५१४, पृ० ३६६ २. वही, लेख संख्या ५००, पृ० ३५०
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