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और योनि शब्द से यह तात्पर्य लिया जाय कि प्राकृत की उत्पत्ति संस्कृत से हुई |
यदि इस प्रकार मान भी लिया जाय तो वररुचि के प्राकृत व्याकरण में इस सम्बन्ध में अन्य प्राकृत भाषाओं के लिए जो कुछ कहा गया है उसका समाधान क्या होगा ?
प्राकृत प्रकाश के अध्याय १०, ११ और १२ में कहा गया है (9) पैशाची १०.१, प्रकृतिः शौरसेनी १०.२
( २ ) मागधी ११.१, प्रकृतिः शौरसेनी ११.२ (३) शौरसेनी १२. १, प्रकृतिः संस्कृतम् १२.२
इन सूत्रों के अनुसार 'प्रकृति' शब्द का अर्थ वही लिया जाय जो हेमचन्द्राचार्य के सूत्र के सम्बन्ध में लिया जाता है तो इसका अर्थ यह होगा कि संस्कृत में से उत्पन्न भाषा तो शौरसेनी है, मागधी शौरसेनी में से उत्पन्न हुई और पैशाची भी शौरसेनी में से निकली ।
इन सबका पुन: यह अर्थ हुआ कि शौरसेनी भाषा मागधी और पैशाची की जनयितृ होने के कारण उनसे पूर्ववर्ती काल की भाषा है । ऐसा मानना प्राकृत भाषाओं के ऐतिहासिक विकास के क्रम की मान्यता के प्रतिकूल जाता है ।
जब शौरसेनी संस्कृत में से निकली तो प्राकृत (महाराष्ट्री ) फिर किसमें से उत्पन्न हुई ?
इस सन्दर्भ में यही मानना योग्य और उचित लगता है कि अलगअलग प्राकृत भाषाओं के लक्षण समझाने के लिए किसी एक को दूसरी भाषा का मात्र आधार बनाया गया है जहाँ पर उत्पत्ति स्रोत या जन्मयोनि का सवाल नहीं है । यह तो मात्र समझाने के लिए एक पद्धति अपनायी गयी है जहाँ उत्पत्ति का सवाल ही नहीं है ।
इस सम्बन्ध में भरतमुनि का मन्तव्य भी जानना अनुचित नहीं होगा ।
उन्होंने प्राकृत की उत्पत्ति, प्रकृति या योनि के बारे में तो कुछ नहीं कहा है । वे लिखते हैं कि नाटकों में दो ही पाठ्य भाषायें हैं, एक संस्कृत और दूसरी प्राकृत ( भ० ना० शा ० १७.१ ) ।
प्राकृत संस्कारगुण से वर्जित होती है । उसमें समान शब्द
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