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________________ ( ६५ ) सांख्यसम्मत अकर्तृत्ववाद का खण्डन : -भारतीय दर्शनों में सांख्य ही एक ऐसा दर्शन है जो आत्मा को अकर्ता मानते हुये भी भोक्ता मानता है । सांख्यवादियों का मत है कि पुरुष अपरिणामी एवं नित्य है इसलिए वह कर्ता नहीं हो सकता; पाप-पुण्य, शुभ-अशुभ कर्म प्रकृति के हैं इसलिये प्रकृति ही कर्ता है।' अन्य दार्शनिकों की तरह जैनदार्शनिकों ने भी सांख्यों के इस सिद्धान्त की समीक्षा करते हुये कहा है कि यदि पुरुष अकर्ता है और पुरुष प्रकृति द्वारा किये गये कर्मों का भोक्ता है तो ऐसे पुरुष की परिकल्पना ही व्यर्थ है । कुन्दकुन्दाचार्य कहते हैं कि 'यदि पुरुष को अकर्ता माना जाय और समस्त कार्यों को करने वाली जड़ प्रकृति को माना जाय तो प्रकृति हिंसा करने वाली होगी तथा वही हिंसक कहलायेगी, जीव असंग व निलिप्त है इसलिए जीव हिंसक नहीं होगा, ऐसी स्थिति में वह हिंसा के फल का भागी भी नहीं होगा। जैन दर्शन की मान्यता के अनुसार प्रत्येक जीव अपने परिणामों से दूसरे की हिंसा करता है, फलतः वह जीव दूसरे की हिंसा के फल का भागी होता है। इस प्रकार सांख्यमत में जड़ प्रकृति कर्ता हो जायेगी तथा सभी आत्मायें अकर्ता हो जायेंगी। जब आत्मा में कर्तृत्त्व नहीं रहेगा तब उसमें कर्मबन्ध का अभाव हो जायेगा। कर्मबन्ध का अभाव हो जाने से संसार का अभाव हो जायेगा, एवं संसार न होने से आत्मा को सदा मोक्ष होने का प्रसंग आ जायेगा जो प्रत्यक्ष विरुद्ध है । अतः सांख्य की तरह आचार्य कुन्दकुन्द आत्मा को सर्वथा अकर्ता नहीं मानते क्योंकि भेदज्ञान के पूर्व अज्ञानदशा में आत्मा रागादिभावों का कर्ता है और भेद ज्ञान के अनन्तर वह एकमात्र ज्ञायक रह जाता है। बौद्धों के क्षणिकवाद का खण्डन :-आत्मकर्तृत्ववाद के प्रसंग में कुन्दकुन्दाचार्य ने क्षणिकवाद का खण्डन किया है । क्षणिकवादी बौद्धों के अनुसार 'यत् सत् तत् क्षणिकम्' इस सिद्धान्त के अनुरूप जो वस्तु जिस क्षण में वर्तमान है, उसी क्षण उसकी सत्ता है, ऐसा मानने पर १. सांख्यकारिका-११, १९, २०, ५७, २६, ४७, ४९-ईश्वरकृष्ण सम्मा० त्रिपाठी, रमाशंकर, वाराणसी १९७० २. श्रावकाचार- (अमितगति) ४१३५ ३. समयसार-३३८-३९, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525005
Book TitleSramana 1991 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1991
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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