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ज्योतिपुंज महावीर
___-पुखराज भण्डारी अपना सर्वस छोड़ चला यह कौन पुजारी। सहज भाव से आज बना यह कौन भिखारी ॥ परिणाम अरे, इस कठिन पंथ का क्यों नहिं सोचा। भौतिक सुख की, तृष्णा की है दृष्टि निवारी ॥
आज भाल पर मुकुट नहीं है, वस्त्र नहीं हैं। आज भुजा पर शासक-सूचित शस्त्र नहीं हैं । कल का राजा आज देख लो, रंक बना है।
सत्ता का अधिकार नहीं है, अस्त्र नहीं हैं। जन-जन का मानस है. इतना आलोडित क्यों। अरे तपस्वी ! मानवता इतनी पीड़ित क्यों। आज पशु पर यज्ञों का ताण्डव क्यों चलता। हिंसा-मिथ्या पर यह जग इतना मोहित क्यों।
नारी की यह हीन अवस्था भली विचारी। छुआछूत की अग्नि की कैसी चिनगारी ।। स्वार्थ, प्रतिष्ठा साधन में है धर्म समाया।
अस्तु, महात्मन् ! तेरे तप की चले कटारी ॥ पीड़ित मानवता कष्टों से मुक्ति पाये। सत्य-अहिंसा के गीतों की शक्ति पाये ॥ चण्डकौशिया का विष सब हो जाये पानी। प्राणि-मात्र की सेवाकी जग भक्ति पाये ॥
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