________________
( १८ ) पूर्णतया अप्रभावित रह पाना कठिन है और इसलिए यह स्वभाविक ही था कि जैन परम्परा की अनुष्ठान विधिपों में ब्राह्मण परम्परा का प्रभाव आया। जैन परम्परा के विविध अनुष्ठान--
जैन परम्परा के विविध अनुष्ठानों में नित्यकर्म के रूप में सामायिक, प्रतिक्रमण आदि षडावश्यकों के पश्चात् जिनपूजा को प्रथम स्थान दिया जा सकता है। जैन परम्परा में स्थानकवासी, श्वेताम्बर, तेरापंथ तथा दिग०तारणपंथ को छोड़कर शेष परम्पराएँ जिनप्रतिमा के पूजन को श्रावक का एक आवश्यक कर्तव्य मानती हैं। श्वेताम्बर परम्परा में पूजा सम्बन्धी जो विविध अनुष्ठान प्रचलित हैं उनमें प्रमुख है-अष्टप्रकारीपूजा, स्नात्रपूजा या जन्मकल्याणपूजा, पंचकल्याणकपूजा, लघुशान्तिस्नात्रपूजा, बृहदशान्तिस्नात्रपूजा, नमिऊणपूजा, अर्हत्पूजा, सिद्धचक्रपूजा, नवपदपूजा, सत्तरहभेदीपूजा, अष्टकर्म की पूजा, अन्तरापकर्म की पूजा, भक्तामरपूजा आदि। दिगम्बर परम्परा में प्रचलित पूजा-अनुष्ठानों में अभिषेकपूजा, नित्यपूजा, देवशास्त्रगुरुपूजा, जिनचैत्यपूजा, सिद्धपूजा आदि प्रचलित हैं। इन सामान्य पूजाओं के अतिरिक्त पर्वदिनपूजा एवं विशिष्ट पूजाओं का भी उल्लेख हुआ है । पर्वपूजाओं में षोडशकारणपूजा, पंचमेसूजा, दश नक्षणपूजा, रत्नत्रयपूजा आदि का उल्लेख किया जा सकता है। दिगम्बर परम्परा की पूजा पद्धति में बीसपंथ और तेरापंथ में कुछ मतभेद हैं । जहाँ बीसपंथ पुष्प आदि सचित्त द्रों से जिनपूजा को स्वीकार करता है वहाँ तेरापंथ सम्प्रदाय में उसका निषेध किया गया है। पुष्प के स्थान पर वे लोग रंगीन अक्षतों या तन्दुलों का उपयोग करते हैं । इसी प्रकार बीसपंथ में बैठकर और तेरापंथ में खड़े रहकर पूजा करने की परम्परा है। यहाँ विशेषरूप से उल्लेखनीय यह है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परम्पराओं के प्राचीन ग्रंथों में अष्टद्रव्यों से पूजा के उल्लेख मिलते हैं। दिगम्बर ग्रंथ वरांगचरित्र (त्रयोविंशसर्ग) में जिनपूजा सम्बन्धी जो उल्लेख हैं वे श्वेताम्बर परम्परा के राजप्रश्नीय के पूजा सम्बन्धी उल्ले वों से बहुत कुछ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org