________________
हमें जैन वाङ्मय में उपलब्ध होती है । आरम्भ में पूजन विधि केवल पुष्पों द्वारा सम्पन्न की जाती थी, फिर क्रमशः धूप, चंदन और नैवेद्य आदि पूजा द्रव्यों का विकास हुआ। पद्मपुराण, हरिवंशपुराण एवं जटासिंहनन्दि के वरांगचरित से हमारे उक्त कथन का सम्यक् समर्थन होता है । वारांगचरित में राजा श्रीकण्ठ कहता है कि मैंने नाना प्रकार के पुष्प, धूप और मनोहारी गंध से भगवान् की पूजा करने का संकल्प किया था, पर वह पूरा न हो सका ।
(5)
रावण स्नान कर धौतवस्त्र पहन, स्वर्ण और रत्ननिर्मित जिनबिम्बों की नदी के तट पर पूजा करने लगा । उसके द्वारा प्रयुक्त पूजा सामग्री में धूप, चंदन, पुष्प और नैवेद्य का ही उल्लेख आया है, अन्य द्रव्यों का नहीं । अतः स्पष्ट है कि प्रचलित अष्टद्रव्यों द्वारा पूजन करने की प्रथा दिगम्बर परम्परा में श्वेताम्बरों की अपेक्षा कुछ समय के पश्चात् ही प्रचलित हुई होगी ।
स्थापयित्वा धूपैरालेपनैः
घनामोदसमाकृष्टमधुव्रतैः पुष्पैर्मनोज्ञैर्बहुभक्तिभिः ॥
- पद्मपुराण, १०/८६ सर्वप्रथम हरिवंशपुराण में जिनसेन ने जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य का उल्लेख किया है । इस उल्लेख में भी अष्टद्रव्यों का क्रम यथावत नहीं है और न जल का पृथक् निर्देश ही है । अभिषेक में दुग्ध, इक्षुरस, घृत, दधि एवं जल का निर्देश है, पर पूजन सामग्री में जल का कथन नहीं आया है । स्मरण रहे कि प्रक्षालन की प्रक्रिया का अग्रिम विकास अभिषेक है जो अपेक्षाकृत परवर्ती है ।
अष्टद्रव्यों का विकास शनैः शनैः हुआ है, इस कथन की पुष्टि अमितगतिश्रावकाचार से भी होती है । इसमें गंध, पुष्प, नैवेद्य, दीप, धूप, और अक्षत इन छः द्रव्यों का उल्लेख उपलब्ध होता है । जटासिंह ने अपने समय में प्रचलित समस्त मंगल द्रव्यों से पूजन करने का निर्देश किया है ।
पद्मपुराण, पद्मनन्दिकृतपंचविंशति, आदिपुराण, हरिवंशपुराण वसुनन्दिश्रावकाचार आदि ग्रंथों से अष्टद्रव्यों का फलादेश भी ज्ञात होता है । यह माना गया है कि अष्टद्रव्यों द्वारा पूजन करने स
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International