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________________ यह सर्वमान्य नियम है कि दूसरे के पुण्यबन्ध में बाधक बनना कभी स्वयं के पुण्य-बन्ध का हेतु नहीं हो सकता। आचार्य हरिभद्र के उपर्युक्त दृष्टिकोण का आधुनिक सन्दर्भो में मूल्यांकन करना आवश्यक है। आचार्य चूंकि किसी भी प्रकार की हिंसा के विरुद्ध हैं अतः धर्म की परम्परागत दृष्टि से उनकी यह व्याख्या उचित हो सकती है। परन्तु जैन धर्म के व्यापक परिप्रेक्ष्य एवं लोकव्यवहार की दृष्टि से मुझे यह व्याख्या उचित नहीं प्रतीत होती। व्यक्ति को उसकी नारकीय यातना से मुक्ति दिला देने में निश्चय ही करुणा का भाव छिपा है, हिंसा का नहीं। पवित्र एवं निःस्पृह भाव से कोई श्रावक यदि असह्य दर्द से कराहते हुए किसी व्यक्ति की हत्या कर देता है तो उसका यह कार्य अनुचित नहीं कहा जा सकता। यह अवश्य है कि मृत्यु का आलिंगन करने वाले व्यक्ति की इसमें सहमति होनी चाहिए और यह निश्चित होना चाहिए कि उसकी मृत्यु अवश्यम्भावी है तथा मानसिक रूप से भी वह मृत्यु के लिए तैयार है। जैन धर्म के परम्परागत दृष्टिकोण से भी विचार करें तो यह कृत्य अधार्मिक नहीं है। हिंसा के क्या कारण हैं तथा हिंसा के कितने रूप हैं-इस पर जैन आचार्यों ने गंभीरतापूर्वक विचार किया है। जैन आचार्यों के अनुसार हिंसा के चार कारण हैं-(१) राग, (२) द्वेष, (३) कषाय और (४) प्रमाद। इन्हीं कारणों के वशीभूत होकर यदि कोई व्यक्ति हिंसा करता है, तभी वह हिंसाजनित पाप का भागी होगा, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार जैन आचार्यों ने हिंसा के चार रूप माने हैं (१) संकल्पजा अर्थात् संकल्प या विचारपूर्वक हत्या करना । (२) विरोधजा अर्थात् स्वयं के अधिकारों के रक्षण हेतु हिंसा करना। (३) उद्योगजा अर्थात् उद्योग एवं व्यवसाय में होने वाली हिंसा । (४) आरम्भजा अर्थात् जीवन निर्वाह के निमित्त होने वाली हिंसा। उपर्युक्त सन्दर्भ में हम देखते हैं कि दर्द से कराहते हुए व्यक्ति की हिंसा में राग-द्वेष, कषाय एवं प्रमाद कोई भी कारण विद्यमान नहीं है १. वहमाणो ते नियमा करेइ वहपुन्नमंतरायं से ता कहणु तस्सं पुन्नं तेसिं क्खवणं व हेऊओ । -श्रावकप्रज्ञप्ति, गा० सं० १४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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