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________________ ५८ ) अनेक उत्तरदायित्व होते हैं जिन्हें वह वहन करता है। अतः अहिंसा का सर्वतोभावेन पालन उसके लिए शक्य नहीं है। एक श्रावक जब अहिंसाणुव्रत का पालन करने का निश्चय करता है तो उसके हृदय में कौन-कौन से विचारोद्वेलक प्रश्न जन्म लेते हैं और कौन-कौन-सी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जो उसके अहिंसा के पालन में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं, इसका आचार्य हरिभद्र ने तार्किक विश्लेषण किया है और उनका समाधान प्रस्तुत कर एक स्तुत्य कार्य किया है। यह आश्चर्यजनक है कि अहिंसा की समस्याओं के सन्दर्भ में यद्यपि ये ग्रन्थकार की स्वयं की ही परिकल्पनाएँ हैं किन्तु वे आज भी जनसाधारण के मानस को उद्वेलित करती हैं और इसीलिए अहिंसा का आधुनिक सन्दर्भो में मूल्यांकन करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। अहिंसा के परिपालन के सन्दर्भ में आज जो अनेक समस्याएं प्रस्तुत की जाती हैं उनमें Mercy killing की समस्या बहुचर्चित है। एक अत्यधिक दुःखी प्राणी जिसका जीवन नारकीय यातनाओं ने भरा हुआ है और जो कष्टों से मुक्ति चाहता है, उसे सर्वदा के लिए चिरनिद्रा में सुला देना पाश्चात्य जगत् में पुण्य का कार्य माना जाता है। प्रश्न यह है कि अहिंसाणुव्रतधारक श्रावक करुणाभाव से यदि ऐसे किसी दुःखी प्राणी का वध कर उसे नारकीय यातना से मुक्ति दिलाता है, तो ऐसा करने से उसका व्रत भंग होता है या नहीं ? ___ आचार्य हरिभद्र इसको अनुचित मानते हैं। उनके अनुसार इस प्रकार के कार्य से दुःखी जीवों के कर्म क्षय नहीं होते हैं और बिना कर्मों के क्षय हुये उनको दुःख से छुटकारा नहीं मिल सकता। कर्मों का क्षय अज्ञान के विनष्ट होने पर ही सम्भव है, दुःखी जीवों के वध से नहीं । पुनः “दुःखी जीवों के वध से वधकर्ता को पुण्य प्राप्त होता है" इस प्रश्न का उत्तर देते हुए हरिभद्र का कहना है कि यदि दुःखी जीवों के वध से वधकर्ता को पुण्य प्राप्त होता है तो वैसी स्थिति में जिन जीवों का वह वध करता है, वे भी यदि जीवित रहते तो अन्य जीवों का वध करके पुण्य प्राप्त करते। इस प्रकार जो दु:खी जीवों के पुण्यबन्ध में स्वयं अन्तराय बनता है, उसको पुण्य-बन्ध कैसे हो सकता है। १. श्रावकप्रज्ञप्ति : प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, गाथा १४१-४२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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