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________________ ( ३० ) जला देने का आदेश दे दिया था और उक्त उल्लेख के अनुसार उन व्यापारियों की पत्नियाँ भी उनकी चिताओं में जल गयी थीं। लेकिन जैनाचार्य इसका समर्थन नहीं करते हैं। पूनः इस आपवादिक उल्लेख के अतिरिक्त हमें जैन साहित्य में इस प्रकार के उल्लेख उपलब्ध नहीं होते हैं, महानिशीथ में इससे भिन्न यह उल्लेख भी मिलता है कि किसी राजा की विधवा कन्या सती होना चाहती थी किन्तु उसके पितकूल में यह • रिवाज नहीं था अतः उसने अपना विचार त्याग दिया । इससे लगता है कि जैनाचार्यों ने पति की मृत्योपरान्त स्वेच्छा से भी अपने देह-त्याग को अनुचित हो माना है और इस प्रकार के मरण को बाल-मरण या मर्खता ही कहा है। सती प्रथा का धार्मिक समर्थन जैन आगम साहित्य और . उसकी व्याख्याओं में हमें कहीं नहीं मिलता है। यद्यपि आगमिक व्याख्याओं में दधिवाहन की पत्नी एवं चन्दना की माता धारिणी आदि के कुछ ऐसे उल्लेख अवश्य हैं जिनमें ब्रह्मचर्य की रक्षा के निमित्त देह-त्याग किया गया है किन्तु यह अवधारणा सती प्रथा की अवधारणा से भिन्न है । जैन धर्म और दर्शन यह नहीं मानता है कि मृत्यु के बाद पति का अनुगमन करने से अर्थात् जीवित चिता में जल मरने से पुनः स्वर्गलोक में उसी पति की प्राप्ति होती है । इसके विपरीत जैनधर्म अपनी कर्म सिद्धान्त के प्रति आस्था के कारण यह मानता है कि पति-पत्नी अपने-अपने कर्मों और मनोभावों के अनुसार ही विभिन्न योनियों में जन्म लेते हैं । यद्यपि परवर्ती जैन कथा साहित्य में हमें ऐसे उल्लेख मिलते हैं जहाँ एक भव के पति-पत्नी आगामी अनेक भवों में ' जीवनसाथी बने, किन्तु इसके विरुद्ध भो उदाहरणों की जैन कथा साहित्य • में कमी नहीं है। ____ अतः यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि धार्मिक आधार पर जैन धर्म सतीप्रथा का समर्थन नहीं करता। जैन धर्म के सती प्रथा के समर्थक न होने के कुछ सामाजिक कारण भी रहे हैं । व्याख्या साहित्य में ऐसी अनेक कथाएँ वर्णित हैं जिनके अनुसार पति को मृत्यु के पश्चात् .. १. (अ) निशीथचूणि, भाग २, पृ० ५९-६० । (ब) तेसि पंच महिलसताई, ताणि वि अग्गिं पावट्ठाणि । -निशीथ चूणि, भाग ४, पृ० १४ । .. २. महानिशीथ पृ० २९ । देखें, जैनागम साहित्य में भारतीय समाज, पृ० २७१। .. ३. आवश्यकचूर्णि, भाग १, पृ० ३१८ । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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