SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०८ ) का निरूपण है । आचार्य ने छः दर्शनों के कुछ प्रमुख ग्रन्थों का उल्लेख 'किया है । कहीं केवल ग्रन्थ - नाम तो कहीं ग्रन्थ के कर्ता और उस पर रचित मुख्य टीका ग्रन्थों का भी उल्लेख किया है । ३. स्याद्वाद - कलिका : ४१ श्लोकों में निबद्ध यह कृति हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा प्रकाशित है । ग्रन्थ के शीर्षक से ज्ञात होता है कि इसमें स्याद्वाद की प्रारम्भिक बातें निहित होगीं । ४. रत्नाकरावतारिका पञ्जिका : यह वादिदेवसूरि (१०८५- ११६९ ई०) द्वारा ६५६ कारिकाओं में विरचित प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार नामक ग्रन्थ, जिसमें जैन न्याय प्रतिपादित है, पर आचार्य द्वारा लिखित व्याख्या ग्रन्थ है ।" इसका आचार्य राजशेखर ने विवृति और पंजिका दोनों नामों से उल्लेख किया है । इसका सम्पादन पं० दलसुख मालवणिया ने किया है । ५. न्यायकन्दली-पंजिका C वैशेषिक दर्शन के प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रशस्तपाद पर श्रीधर ने न्यायकन्दली नामक भाष्य लिखा था । यह पंजिका न्यायकन्दली पर आचार्य की टीका है । इसका रचना काल संवत् १३८५ और ग्रन्थाग्र ४००० श्लोक प्रमाण है । ६. न्यायावतार- -टिप्पणक : जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह ' * के अनुसार सिद्धसेन रचित न्यायावतार पर मलधारि राजशेखर ने टिप्पणक लिखा है । जिन रत्नकोश १. एल० डी० सिरीज, अहमदाबाद १९६५, तीन खण्डों में मूल और अन्य टीकाओं के साथ प्रकाशित २. वेलणकर, एच० डी०, जिनरत्नकोश पृ० २१९ १३. ( श्रीराजशेखरसूरि विरचितं ) न्यायावतारटिप्पनकं समाप्तं । संवत् १४८९ वर्षे श्रावणसुदि बुधे त्रयोदश्यां तिथौ लिखितं । जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह - सं० मुनिजिनविजय भाग १, पृ० १४६, सिंघी जैन ग्रन्थमाला १८, भारतीय विद्याभवन बम्बई १९४२ ई० ४. जिनरत्नकोश पृ० २४ वेलणकर, एच० डी०, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525004
Book TitleSramana 1990 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshok Kumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy