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________________ ( ७२ ) भी इस तीर्थ का उल्लेख है और यहां जिनालय में १४५ प्रतिमाओं के विद्यमान होने की बात ही गयी है।' धीरे धीरे यह नगरी उजड़ गयी और वर्तमान में तो एक साधारण ग्राम मात्र ही अवशिष्ट है। १७वीं शती के पश्चात् इस स्थान का उल्लेख किसी भी स्रोत (साहि त्यिक अथवा पुरातात्विक) में प्राप्त नहीं होता, अतः यह माना जा सकता है कि उसी समय से इस नगरी की अवनति प्रारम्भ हई होगी। १० शुद्धदन्ती स्थित पार्श्वनाथ कल्प जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदोप के अन्तर्गत "शुद्धदन्तीनगरी" का भी उल्लेख किया है और यहाँ पार्श्वनाथ के मंदिर होने की बात कही है। उनके विवरण की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं - “पूर्वकाल में अयोध्या नगरी में राजा दशरथ के पुत्र आठवें बलदेव श्रीपद्म ने भगवान् पार्श्वनाथ की एक रत्नमयी प्रतिमा अपने निजी चैत्शालय में स्थापित की। कालक्रम से पूर्व देश में दुर्भिक्ष पड़ने से अधिष्ठायकदेव ने उक्त प्रतिमा गगनमार्ग से सातसौदेश के शुद्धदन्ती नामक नगरी में भूमिगृह में रख दी और उसे रत्नमय से पाणाणमय बना दिया। बहुत काल बीतने पर सोधतिवालगच्छ में विमलसूरि नामक एक जैनाचार्य को स्वप्न में उक्त प्रतिमा के बारे में जानकारी मिली तब उन्होंने प्रतिमा प्राप्त कर एक नवनिर्मित चैत्य में उसे स्थापित कर दी । कालचक्र के प्रभाव से एक बार तुर्कों ने यहाँ आक्रमण किया और पार्श्वनाथ की उक्त प्रतिमा के सिर को धड़ से अलग कर दिया। उस समय वहाँ आये एक अजापालक ने भूमि पर पड़े प्रतिमा के सिर को उठाकर उसके धड़ पर रख दिया जिससे वह तुरन्त जुट गयी। आज भी वही प्रतिमा वहाँ पूजी जाती है।" जिनप्रभ के उक्त विवरण का सार यही है कि सोधतिवालगच्छीय किसी विमलसूरि नामक एक जैनाचार्य को स्वप्नादेश से भूमि से पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा प्राप्त हुई जिसे उन्होंने यहाँ एक नवनिर्मित चैत्य में स्थापित कर दिया और बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इस जिनालय और प्रतिमा को भग्न कर दिया। १. विजय धर्मसूरि-संपा. प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, भाग २, पृ० ६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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