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________________ ( ६१ ) नागहृद कल्पप्रदीप के "चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत नागहृद का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहां भगवान् पार्श्वनाथ के मंदिर होने की बात कही गयी है "कलिकुण्डे नागहृदे च श्रीपार्श्वनाथः" नागहृद, आज नागदा के नाम से विख्यात है। अभिलेखों में इसका नाम नागद्रह भी मिलता है। स्थानीय किंवदन्तियों में इसका सम्बन्ध नागों से जोड़ा जाता है। गुहिल वंशीय शासक नागादित्य इस नगरी का संस्थापक माना जाता है । नागदा गुहिलों की राजधानी और जैन, वैष्णव तथा शैव धर्मानुयायियों का एक प्रसिद्ध तीर्थ रहा है । दिगम्बर आचार्य मदन कीर्ति ने शासनचतुत्रिशिका में यहां के पार्श्वनाथ की वन्दना की है ---- स्रष्टेति द्विजनायकैर्हरिरिति [ प्रोद्गीयते ] वैश्र(ष्ण)वै बौद्धर्बुद्ध इति प्रमोदविवशैः शूलीति माहेश्वरेः । कुष्टाऽनिष्ट-विनाशनो जनदृशां योऽलक्ष्यमूर्तिविभुः स श्रीनागहृदेश्वरो जिनपतिदिग्वाससां शासनम् ॥ १३ ॥ अर्थात - द्विजनायक-ब्राह्मण जिन्हें स्रष्टा', वैष्णव हरि ( विष्णु ), बौद्ध 'बुद्ध' और माहेश्वरी-शंव 'शूली' बड़े हर्षपूर्वक बतलाते हैं तथा जो कुष्ट और अनिष्टों को विनष्ट करने वाले हैं, अर्थात् जिनके दर्शनादिमात्र से कुष्टजनों का कोढ़ तथा दर्शनार्थी भव्यों के नाना अनिष्टों का सर्वथा नाश हो जाता है और साधारण लोगों के लिये जिनकी मूर्ति अलक्ष्य (अदृश्य) है वह श्री नागहृदतीर्थ के नागहृदेश्वर (पाश्र्व) जिनेन्द्रप्रभु दिगम्बर शासन का लोक में प्रभाव स्थापित करें। प्राकृतनिर्वाणकाण्ड ( १२वीं-१३वीं शती ई० सन् ) तथा तीर्थवन्दना ( उदयकीर्ति-१२वी-१३वीं शती ई० सन् ) में भी इस तीर्थ का उल्लेख मिलता है पासं तह अहिणंदण णायदह मंगलाउरे बंदे ॥१॥ प्राकृतनिर्वाणकाण ( अतिशय क्षेत्रकाण्ड ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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