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________________ ( २५ ) ज्ञान प्राप्त कर अपने व्यावहारिक जीवन में सुधार और परिवर्तन लाना और उसके अनुकूल कार्य करना है । अतः व्यावहारिकतावादी दृष्टि और अनेकान्तवाद, जहां तक मानवता के उत्थान का प्रश्न है, एक दूसरे से सहमत हैं । दोनों में मोटे रूप से अन्तर जो हमें दीख पड़ता है वह यह कि व्यावहारिकतावादियों का बल विशेष रूप से मनुष्य के क्रियाकलानों पर है और वही सत्य के निर्णायक भी माने जाते हैं, क्योंकि जिस कार्य सम्पादन से सफलता मिलती है वही सत्य का परिचायक है । किन्तु जैन दर्शन में सत् के स्वरूप की परख के पश्चात् ही किसी कर्म के सम्पादन की बात उठती है, जैसा कि हम नय की व्याख्या के प्रसंग में देखते हैं । सत् अनन्त धर्मात्मक है, इसीलिए उसे किसी विशेष दृष्टि से ही हम देख सकते हैं और ऐसी नय-दृष्टि के आधार पर जो ज्ञान हमें प्राप्त होता है उसे विशेष की अपेक्षा से सत्य मानते हैं । Jain Education International प्रोफेसर, दर्शन विभाग जगजीवन कालेज, गया (बिहार) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525003
Book TitleSramana 1990 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size4 MB
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