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________________ ( ४२ ) बैठने पर जिस शरीर के चारो कोण समान हों अर्थात् आसन और कपाल का अन्तर, दोनों जानूओं का अन्तर, वाम स्कन्ध और वाम जानु का अन्तर समान हो, उसे समचतुरस्त्र संस्थान से युक्त व्यक्ति कहते हैं। __साथ ही जिस शरीर के सम्पूर्ण अवयव ठीक प्रमाण वाले हों, उसे समचतुरस्र संस्थान से युक्त व्यक्तित्व कहते हैं । दूसरे प्रकार से कह सकते हैं कि ऊपर, नीचे और मध्य में कुशल शिल्पी द्वारा बनाये गये समचक्र की तरह समान रूप से शरीर के अवयवों की रचना होना। जैन परम्परा मे शलाकापुरुषों का शरीर-रचना इसी संस्थान से युक्त होती है। २. न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण : न्यग्रोध वट वृक्ष को कहते हैं। जैसे वट वृक्ष ऊपर फैला हुआ होता है और नीचे भाग में संकुचित होता है, उसी प्रकार जिस संस्थान में नाभि के ऊपर का भाग विस्तारवाला और नीचे का भाग हीन अवयव वाला हो उसे न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान कहते हैं। इसकी पुष्टि अकलंकदेव ने भी की है। ३. सादि संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण : जिस संस्थान में नाभि से नीचे का भाग पूर्ण और ऊपर का भाग हीन हो, उसे सादि संस्थान कहते हैं। सादि सेमल ( शाल्मली) वृक्ष को कहते हैं । शाल्मली वृक्ष का धड़ (तना) जैसा पुष्ट होता है वैसा ऊपर का भाग नहीं होता। १. तत्रो/धोमध्येषु समप्रविभागेन शरीरावयवमन्निवेशव्यवस्थापन कुशलशिल्पिनिर्वततसमस्थितिचक्रवत अवस्थानकरं समचतुरस्र संस्थाननाम ।---राजवातिक, संपा. महेन्द्रकुमार जैन, पृ. ५७६ । २. नाभेरुपरिष्टाद् भूयसो देहसन्निवेशष्याधस्ताच्चापीयसो जनकं न्यग्रोध-- परिमण्डलसंस्थाननाम । वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525002
Book TitleSramana 1990 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size6 MB
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