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शरीर-संरचना के आधार पर मानव व्यक्तित्व का वर्गीकरण (जैन दर्शन और आधुनिक मनोविज्ञान)
-डा० त्रिवेणी प्रसाद सिंह जैन दर्शन में मानव व्यक्तित्व के वर्गीकरण के विभिन्न मानक प्रचलित रहे हैं। इनमें एक मानक शारीरिक संरचना के आधार पर भी है, हालाँकि शारीरिक संरचना के आधार पर भी मानव व्यक्तित्व के वर्गीकरण करने की विभिन्न शैलियाँ प्रचलित हैं, यथा-शरीर की बनावट, शरीर का आकार-प्रकार, लिंग आदि। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों में क्रेत्समर और शेल्डन ने शारीरिक संरचना (विशेष रूप से शरीर के आकार प्रकार) को ध्यान में रखकर मानव-व्यक्तित्व का वर्गीकरण किया और उस शरीर के आकार-प्रकार का मानव स्वभाव के साथ सह सम्बन्ध खोजने का प्रयत्न किया है। जैन आगम ग्रन्थों में शारीरिक आधारों पर मानव व्यक्तित्व के वर्गीकरण के तीन प्रारूप प्रचलित रहे हैं - संहनन, संस्थान और लिंग । यद्यपि जैन दार्शनिकों ने एक मनोवैज्ञानिक के रूप में इन शारीरिक संरचनाओं का स्वभावगत विशेषताओं के साथ सह-सम्बन्ध को स्पष्ट करने का कोई प्रयत्न नहीं किया, फिर भी वे एक धर्म-दार्शनिक के रूप में इन शारीरिक संरचनाओं का आध्यात्मिक विकास के साथ सह संबंध देखने का प्रयास अवश्य करते हैं। सर्वप्रथम मैं जैनों के संस्थान-सिद्धान्त की चर्चा करना उचित समझगा। ये छ: प्रकार के हैं - समचतुरस्त्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान, सादि संस्थान, कुब्ज संस्थान, वामन संस्थान और हंडक संस्थान ।
१. समचतुरस्त्र संस्थान से युक्त व्यक्तित्व के लक्षण : -
यह शब्द सम-|-चतुः-|-अस्र से बना है। सम का अर्थ है समान, वतुः का अर्थ है चार और अस्र का अर्थ है कोण । पालथी मारकर
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