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________________ ( ११५ ) है । इसमें गो-पूजा एवं नाग-पूजा के साक्षात् फलों पर प्रकाश डालते हए ग्रन्थकार ने आत्मवाद, पुनर्जन्मवाद एवं पूर्वकृत-कर्मों के फलों पर रोचक कथाओं के माध्यम से सुन्दर प्रकाश डाला है। इसके सम्पादक प्रो० राजाराम जैन प्राकृत एवं अपभ्रश भाषा के शीर्षस्थ विद्वान् हैं। प्रन्थ के प्रारम्भ में १६ पृष्ठों की अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रस्तावना एवं प्रत्येक गाथा के साथ हिन्दी अनुवाद इसकी उपयोगिता को द्विगुणित कर देते हैं । इस महत्त्वपूर्ण कृति को प्रकाश में लाने के लिये इसके सम्पादक एवं प्रकाशन दोनों बधाई के पात्र हैं। x x चितन के चार चरण-विजयमुनि शास्त्री; पृ० १४+१५६; मूल्य -२० रुपये; प्रकाशन वर्ष १९८९; प्रकाशक-पापुलर इलेक्ट्रिक वर्स, फौवारा, आगरा; प्रस्तुत पुस्तक में श्री विजयमुनि शास्त्री के अप्रकाशित लेखों का संकलन है । इसमें अध्यात्म, धर्म एवं दर्शन से सम्बद्ध १६ लेखों तथा संस्कृति, शिक्षा तथा साहित्य से सम्बन्धित २० लेखों को स्थान दिया गया है। पुस्तक प्रत्येक जैनो गासक के लिये पठनीय है। इसकी साजसज्जा आकर्षक एवं मुद्रण त्रुटिरहित है। दुःख मुक्तिः सुख प्राप्ति -श्री कन्हैयालाल लोढ़ा; पृ० : १६+ १२६; मूल्य : ३० रुपये; प्रथम संस्करण-जून १९८९; प्रकाशकप्राकृत भारती अकादमी एवं सम्यक्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर । __ सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहल हैं। सम्पूर्ण मानव जीवन इसी सुख और दुःख पर ही आधारित है। ऐसा कोई प्राणी नहीं जिसे केवल दुःख या केवल सुख हो । संसार में प्रत्येक जीव चाहे वह छोटा हो या बड़ा, उसे जीवनसंग्राम में सुख और दुःख का सामना करना ही पड़ता है। हम सभी सुखी रहना ही चाहते हैं, दुःखी नहीं और इसके लिये सदैव प्रयत्नशील भी रहते हैं। जिस सुख को हम प्राप्त करना चाहते हैं, वह प्राप्त होते ही हम पुनः नये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.525001
Book TitleSramana 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year1990
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size5 MB
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